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________________ १८४] श्रीप्रवचनसारटोका। लिये एक साधारण निमित्त कारण अवकाश देनेमें आकाश द्रव्य है, गमन करने में धर्म द्रव्य है, स्थिति होनेमें अधर्म द्रव्य है । सर्व ही द्रव्य परिणमनशील हैं उनमे पर्यायकी पलटन अपनी ही उपादान शक्तिसे होती है परन्तु उनके परिणमनमें निमित्त कारण कालद्रव्य है । आत्मा ज्ञान दर्शन उपयोग रखता है यह आत्माका विशेष गुण है जो औरोंमे नहीं पाया जाता । आत्मा ज्ञाता भी है, ज्ञेय भी है जब कि सब द्रव्य मात्र ज्ञेय हैं, ज्ञाता नहीं है। ये पांच द्रव्य स्पर्श, रस, गंध है, वर्णसे रहित है इसी लिये अमूर्तीक हैं, पुद्गल मात्र मूर्तीक है । इन छहों द्रव्योंके भीतर एक निज आत्मा ही ग्रहण योग्य है ।। ४४ ॥ इस तरह किस द्रव्यके क्या विशेष गुण होते हैं ऐसा कहत्ते हुए तीसरे स्थलमे तीन गाथाएं पूर्ण हुई। उत्थानिका-आगे कालद्रव्यको छोड़कर जीव आदि पांच द्रव्योके अस्तिकायपना है ऐसा व्याख्यान करते हैं जोवा पोग्गलकाया धम्माऽधम्मा पुणो य आगासं। देसेहि असंखादा णत्थि पदेसत्ति कालस्स ॥ ४४ ॥ जीवाः पुद्गलाया धर्माधर्मों पुनश्चाकाशम् । प्रदेशैरसख्याता न संति प्रदेशा इति काल्स् ॥ ४४ ॥ अन्वयसहित सामान्यार्थ-(जीवा पोग्गलकाया) अनन्तानंत जीव और अनंतानन्त पुद्गल (धम्माऽधम्मा ) एक धर्मद्रव्य एक अधर्मद्रव्य (पुणो य आयास) और एक आकाशद्रव्य (देसेहि असंखादा) अपने प्रदेशोकी गणनाकी अपेक्षा संख्यारहित हैं, (कालस्स पत्थि पदेसत्ति) काल द्रव्यके बहुत प्रदेश नहीं हैं।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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