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श्रीप्रवचनसारदोका |
इस अवस्थाको पुगलकी व्यजन पर्याय कह सक्ते हैं। जो जो पर्यायें स्कंधोंकी होती हैं वे सब व्यंजन पर्याय हैं। आकार के पलटने को ही व्यंजन पर्याय कहते हैं । अमूर्तीक आकाशका गुण शब्द नहीं हो सक्ता क्योंकि शब्द मूर्तीक है इसीलिये कर्ण इंद्रियके गोचर है तथा अन्य पवन, आग, जल, पृथ्वीकी तरह रोका जा सक्ता है । शव्द सूक्ष्म स्थूल है इसीलिये कर्णके सिवाय और इंद्रियें, उसको ग्रहण नहीं कर सक्ती ।
शब्द अक्षर रूप भी होते हैं अनक्षर रूप भी होने हैं ! मनुष्योके शब्द अक्षररूप, पशुओके अनक्षररूप होते हैं । मनुष्यकी प्रेरणासे तरह तरहके बाजेके शब्द अनक्षर होते है, तथा स्वाभाविक बादलोंकी गर्जना होना, विजलीका तड़कना, अग्निका चटकना आदि अनक्षररूप शब्द होते है ।
वृत्तिकारने जैसा दिखाया है उसको समझकर पुलके भी शुद्ध अशुद्ध भेद समझ लेना । जो परमाणु बंध योग्य नही है वह शुद्ध है तथा जो बंधरूप है वह अशुद्ध है । जैसे स्निग्ध व रूक्ष गुण पुद्गल के बधका कारण हैं वैसे राग द्वेष मोह ससारी आत्माक बंधका कारण है । इसलिये जो जीव वधकी अवस्था से हटकर अबंध होना चाहते हैं उनको उचित है कि वे रागद्वेष मोहको, त्याग करके साम्यभावरूपी चारित्रको धारण करें। यह तात्पर्य है ।
श्री पंचास्तिकायमें आचार्य महाराजने पृथ्वी आदिका कारण परमाणु है तथा शब्द पुद्गलका गुण नहीं है किन्तु एक विशेषः जातिका पुद्गलोका परिणमन है, ऐसा बताया है
अ.देशमत्तमुत्तो धादुन्दुकस्स वारणं जो दु ।
सो ओ परमाणू परणामगुणो सयम द्दा ॥७८॥