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________________ द्वितीय खंड। [१९९ कभी भी स्पर्श, रस, गध, वर्ण गुणोंसे छूट नहीं सक्ता कितु अनेक प्रकारके स्कधोमें कोई स्कंध किसी गुणको प्रगट रूपसे दिखाते है कोई फिमी गुणको अप्रगटपने रखते है । गुण, गुणीसे कभी जुदे नही हो सक्ते। यदि सूक्ष्मतासे देखा जावे तो इन नलादिमें अन्य गुण भी प्रगट झलक जायगे । जलको हम सूप भी सक्त है परन्तु उसकी गंध स्पष्ट नहीं मालूम होगी। कभी किसी जलकी मालूम भी हो जायगी। एक वस्तु जल सयोगके विना भिन्न गंवको रखती है वही वस्तु जल सयोगसे गधको बदल देती है। सूखा आटा और गीला आटा मिन्न २ गंधको प्रगट करते हैं। यदि जलमें गंब न होती तो ऐमा नहीं हो सका। अग्निसे पकाए हुए भोजनोंमें भिन्न प्रकारका रस तथा गफ होनाता है । यदि अग्निमे रस या गध नहीं होते तो ऐमा नहीं हो सक्का था । पवनके सम्बन्धसे वृक्षादिमे भिन्न प्रकारका रस, गंध, वर्ण होनाता है । यदि पवनमें ये रस, गध, वर्ण न होते तो इसके सयोगसे विलक्षणता न होती। पुद्गलोमे अनेक जातिके परिणमन होते है । हम अल्पज्ञानी किसी स्कधको प्रगटपने चारों इद्रियोंसे न ग्रहण कर सकें परन्तु सूक्ष्मज्ञानी हरएक परमाणुमात्रमें भी चारों ही गुणोको जानते देखते है । हम शक्तिके अभावसे यदि न जाने तो क्या उन गुणोंका अभाव हो सक्ता है ? कदापि नहीं। शब्द भी पुद्गल की अवस्था विशेष है । दो पुद्गलोके एक दूसरेसे टक्कर खानेपर जो भापा वर्गणा तीन लोकमे फैली है उनमे शब्दपना प्रगट होजाता है । यह पुगलका गुण नहीं है, किन्तु बाह्य और अतरग निमित्तसे पैदा होनेवाली एक विशेष अवस्था है।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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