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१९८] श्रीप्रवचनसारटोका। परमाणुओंमें नहीं होता तो इन्हीके बने हुए स्थूल स्कंध इन्द्रिय
गोचर नहीं होते । पुद्गलकी सर्व रंचना परमाणुओंके मिलने . विछुड़नेसे हुआ करती है । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु ये सब
परमाणुओके भिन्न २ प्रकारके बंधके संगठनकी अपेक्षा नाना प्रकार स्कंध हैं । ऐसा नहीं है कि इनके परमाणु अलग अलग ही हैं। क्योकि जगतमें देखनेमें आता है कि ये चारों परस्पर अदलते बदलते रहते है जैसे लकड़ीसे अगि बनती है, जौनामा अन्नसे पेटमें वायु पैदा होती है, चंद्रकांति मणि पृथ्वीकायसे चंद्रमाकी किरणका सम्बंध होनेपर जल झड़ने लगता है। सूर्यकांतिभणि पृथ्वीकाय है, सूर्य किरणका सम्बन्ध होनेपर उसमेसे अग्नि प्रगट " होनाती है, जलसे पृथ्वीकाय मोती पैदा हो जाता है, अग्निसे धूआं बन जाता है जिसको एक तरहकी वायु कहते हैं, वायुके मिलानेसे जल बन जाता है। जल जमकर बरफकी शिलारूप पृथ्वी बन जाती है, क्योंकि कठोरता आदि प्रगट हो जाते हैं। इसतरह परिवर्तन होते होते पुद्गल परमाणुओकी ही अनेक अवस्थाएं माननी चाहिये । यदि पृथ्वी जल आदिके भिन्न २ परमाणु होते तौ परिवर्तन नहीं होता।
यदि यह कहा जाय कि यद्यपि पृथ्वीमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण चारों हैं क्योकि चारों इन्द्रियोंसे जाने जा सले हैं परन्तु जलमे गंध नहीं है, क्योकि नाक जलको नहीं सूंघ सक्ती, अग्निमे गंध रस नहीं है क्योकि घ्राण तथा जिल्हा ग्रहण नहीं कर सक्ती । पवनमे गंध, रस, वर्ण नहीं है क्योकि घ्राण, जिह्वा और नेत्र उसको ग्रहण नहीं करते हैं। इसका समाधान यह है कि पुद्गल