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१७६ ] श्रीप्रवचनसारटोका। आकाशका गुण हो तो शब्द अमूर्तीक होनावे । जो अमूर्त वस्तु है वह कर्ण इंद्रियसे ग्रहण नहीं होसक्ती और यह प्रत्यक्ष प्रगट है कि शब्द कर्ण इंद्रियका विषय है। बाकी इद्रियोका विषय क्यों नही होता है ? ऐसी शंकाका समाधान' यह है ।' अन्य इंद्रियका विषय अन्य इंद्रिय द्वारा नहीं ग्रहण किया जासक्ता ऐसा वस्तुका स्वभाव है जैसे रसादि विषय रसना इन्द्रिय आदिके हैं। वह शब्द भाषारूप, अभाषारूप, प्रायोगिक और वैश्रसिकरूप अनेक प्रकारका है जैसा पंचास्तिकायकी “सद्दो खंधप्पभवो" इस गाथामें समझाया है यहां इतना ही कहना वश है।
भावार्थ-इस गाथामे आचार्यने पुद्गलके विशेष गुणोको बताकर उसकी अवस्थाओको भी समझाया है । स्पर्श, रस, गंध, वर्ण ये चार पुद्गलके मुख्य गुण है-रूखा, चिकना, गर्म, ढंढा, हलका भारी, नरम, कठोर आठ तरहका स्पर्श होता है । स्वट्टा, मीठा, चर्परा, तीखा कषायला पाच तरहका रस होता है । सफेद, लाल, पीला, नीला, काला पांच तरहका वर्ण होता है । सुगंध, दुर्गंध दो तरहकी गंध होती । इनमे से एक समयमे ५ गुण पुद्गलके एक अविभागी परमाणुमे पाए जाते हैं जैसे स्पर्शके दो रूखा 'अथवा चिकना, गरम या ठता अथात् कोई परमाणु रूखा होगा कोई चिकना होगा, कोई गरम होगा कोई ठंढ़ा होगा । रस एक कोई, गंध एक कोई, वर्ण एक कोई इस नरह पाच गुण परमाणुमें पाए जायगे।
दो परमाणुका या दोये अधिक सख्यात, असंख्यात, अनत परमाणु• ओका मिलकर स्कंब बन जाता है। स्कंधमें एक समयमे सात गुण + पाएं जायगे हलका या भारी, कोमल या कठोर ऐसे दो और बढ़