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________________ द्वितीय खंड ! [ 34 विशेषार्थ- पुद्गल द्रव्यके विशेष गुण स्पर्श रस गध वर्ण हैं। वे पुद्गल सूक्ष्म परमाणुसे लेकर पृथ्वी रूप रूप स्थूल तक है । जैसे इस गाथामें कहा है , पुढवी जल च छाया चउरिदिय विमय रुम्मपरमाणू | छवि भणिय पोग्गलदव्वं जिणवरेहिं ॥ जैसे सर्व जीवोंमें अनन्त ज्ञानादि चतुष्टय विशेष लक्षण यथासभव साधारण है तैसे ही वर्णादि चतुष्टय रूप विशेष लक्षण यथासम्भव सर्व पुद्गलो में साधारण है । और जैसे अनन्तज्ञानादि चतुष्टय मुक्त जीवमे प्रगट हैं सो अतीन्द्रिय ज्ञानका विषय है । हमको अनुमानसे तथा आगम प्रमाणसे मान्य है तैसे हीं शुद्ध परमाणु में वर्णादि चतुष्टय भी अतीन्द्रिय ज्ञानका विषय है । हमको अनुमान से तथा आगमसे मान्य है । जैसे यही अनंतचतुष्टय ससारी जीव में रागद्वेषादि चिकनाईके कारण कर्मवध होनेके वशसे अशुद्धता रखते है तैसे ही स्निग्ध रूक्ष गुणके निमित्तसे दो अणु तीन अणु आदिकी बंध अवस्थामे वर्णादि चतुष्टय भी अशुद्धताको रखते हैं। जैसे रागद्वेषादि रहित शुद्ध आत्माके ध्यानसे इन अनन्तज्ञानादिचतुष्टय की शुद्धता होजाती है तसे ही यथायोग्य स्निग्ध रूक्ष गुणके न होनेपर बन्धन न होते हुए एक पुद्गल परमाणुकी अवस्थामें शुद्धता रहती है। और जैसे नरनारक आदि जीवको विभाव पर्याय है तैसे यह शब्द भी पुद्गलकी विभाव पर्याय हैगुण नहीं है क्योकि गुण अविनाशी होता है परन्तु यह शब्द विनाशीक है । यहा नैयायिक मतके अनुसार कोई कहता है कि 1 , यह शब्द आकाशका गुण है इसका खंडन कहते हैं कि यदि शब्द
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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