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१७४ ] श्रीप्रवचनसारटीका । गुणको वे रखते हैं जिनको इंद्रियोंके द्वारा ग्रहण किया जासक्ता है इसलिये वे भी मूर्तीक हैं और उनके गुण भी मूर्तीक हैं।
श्री तत्वार्थसारमें अमृतचंद्राचार्य कहते हैशब्दरूपरसस्पर्शगन्धात्यतव्युदामतः । पच द्रव्याण्यरूपाणि रूपिणः पुद्गलाः पुनः ॥ १६३ ॥
भावाथ-क्योकि पांच द्रव्योंमें मूर्तीक शब्द पर्याय वा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श गुण नहीं होते है इसलिये वे अमूर्तीक हैं नन कि मात्र एक पुद्गल द्रव्यं मूर्तीक है क्योकि इनमे ये चार गुण होते है और शब्द इसी मूर्तीक पुदल द्रव्यकी पर्याय है । तात्पर्य -यह है कि इन मूर्त और अमूर्त द्रव्योंमें मात्र अमूर्तीक एक निज शुद्ध आत्मा ही ग्रहण करने योग्य है ।
इस तरह ज्ञान आदि विशेष गुणोके भेदसे द्रव्योंमें भेद होता है ऐसा कहते हुए दूसरे स्थलमें दो गाथाएं पूर्ण हुई ॥ ४० ॥ '
उत्थानिका-आगे मूर्तीक पुद्गल द्रव्यके गुणोको कहते हैंवण्णरसगंधफासा विज्जते पुगलस्स सुहुमादो ।' पुढवो परियतस्स य सद्दो सो पोग्गलो चित्तो॥४१॥ वणरसगंधस्पर्धा विद्यन्ते पुद्गल्स्य सूक्ष्मत्त्वात् । पृथिवीपर्यन्तस्य च शब्दः स पुद्गलचित्रः ॥ ४१ ॥
अन्वरसहित म म न्यार्थ-( सुहुमादो पुढवी परियंतस्स) -सूक्ष्म सूक्ष्म परमाणुसे लेकर पृथ्वी पर्यंत (पुग्गलस्स) पुद्गल द्रव्यके. (वण्णरसगंधफासा) वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, (विजते ) मौजूद पाए जाते हैं । (य) और (सद्दो) शब्द है ( सो पोग्गलो चित्ता) सो पुद्गल है व नाना प्रकार है।