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________________ N द्वितीय खंड। [१७३ भावार्थ-इस लोकमें छः द्रव्य है उनमेसे केवल एक पुद्गल मूर्तीक है क्योंकि उसके वर्ण, गंध, रस, स्पर्श गुण चक्षु, घाण, रसना तथा स्पर्शन इद्रियोंके द्वारा क्रमसे जाननेमे आते है । और इसी लिये इस पुद्गलके वर्णादि गुणोको मूर्तीक गुण कहते है तथा जीव, धर्म, अधर्म, काल, आकाश ये पांच द्रव्य अमूर्तीक है क्योकि इनके विशेष गुण पाचो ही इद्रियोसे नहीं जाने जासक्ते । जीवके केवलज्ञानादि गुण, धर्मका गतिहेतुपना, अधर्मका स्थितिहेतुपना कालका वर्तना तथा आकाशका अवगाहं देना ये सर्व कोई भी इंद्रियोसे देखे, सूघे, चखे, स्पर्श तथा सुने नहीं जाते है इसलिये जैसे ये पाच द्रव्य अमूर्तीक है वैसे इनके विशेप गुण भी अमूर्तीक है । क्योकि गुण और गुणी तादात्म्य सम्बन्ध रखते है ता गुणोके अखंड सर्वाग व्यापक समूहका ही नाम द्रव्य है इसलिये मुर्तीक गुणधारी द्रव्य मूर्तीक होते है और अमूर्तीक गुणधारी द्रव्य अमूर्तीक होते है। यद्यपि पुद्गलके वहुतसे सुक्ष्म स्कंध तथा सर्व ही अविभागी परमाणु किसी भी इद्रियसे नहीं जानने में आते तथापि जव भेदसंघातसे वे सूक्ष्म स्कध स्थूल होजाते हैं तथा परमाणुओके संघातसे स्थूलस्कंध बन जाते हैं । तब वे किसी न किसी इद्रियके द्वारा जाननेमे आनाते है जैसे आहारक वर्गणाको हम देख नहीं सक्ते परन्तु उनसे बने हुए औदारिक शरीरको देखते हैं, भाषा वर्गणाको हम देख नही सकते व सुन नहीं सक्ते परन्तु उनके बने शब्दोंको हम सुन सक्ते है । यद्यपि ये सूक्ष्म स्तंभ तथा परमाणु इंद्रियगोचर नही है तथापि उनमें इद्रियगोचर होनेकी शक्ति है तथा वे सब पुद्गल है और उन ही स्पर्श, रस, गध, वर्ण
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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