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१७२] श्रोप्रवचनसारटोका ।
भावार्थ-पुद्गलादि द्रव्य अन्य हैं, जीव अन्य है तथा जगतका सब व्यवहार भी अन्य है। यदि यह जीव पुद्गलादि सर्वको त्याग करके निज आत्माको ग्रहण करे तो शीघ्र मोक्षकी प्राप्ति करे ॥३९॥
इस तरह गुणोके भेदसे द्रव्यका भेद जानना चाहिये ।
उत्थानिका-आगे मूर्तीक और अमूर्तीक गुणोंका लक्षण और सम्बन्ध कहते है:मुत्ता इन्दियगेज्मा पोग्गलवप्पगा अणेगविधा । व्वाणममुत्तार्ण गुणा अमुत्ता मुणेदव्या ॥ ४० ॥ मूर्ता इंद्रियग्राह्याः पुद्गलद्रव्यात्मा अनेकविधा । द्रव्याणममूर्ताना गुणा अमूर्ती ज्ञातव्याः ॥ ४० ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ (इंटियगेज्झा) इंद्रियोके ग्रहण करने योग्य गुण ( मुत्ता ) मूर्तीक होते हैं वे गुण (अणेगविधा) वर्ण आदिके भेदसे अनेक प्रकार हैं तथा (पोग्गल दव्वप्पगा) पुद्गल द्रव्य सम्बन्धी हैं । (अमुत्ताणं दव्वाण) अमूर्तीक द्रव्योके (गुणा) गुण (अमुत्ता) अमूर्तीक (मुणेदव्वा) जानने योग्य है।
विशेपार्थ-जो इन्द्रियोके द्वारा ग्रहण करने योग्य हैं वे मूर्तीक गुण हैं और जो इंद्रियोंके द्वारा नहीं ग्रहण किये जावें वे अमूर्तीक गुण हैं इसतरह मूर्तीक गुणोका लक्षण इद्रियोका विषयपना है जब कि अमूर्तीक गुणोंका लक्षण इंद्रियों का विषयपना नहीं है । मूर्तीक गुण अनेक प्रकारके पुद्गल द्रव्य सम्बन्धी होते हैं तथा केवलज्ञान आदि अमूर्तीक गुण विशुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभावधारी परमात्मा द्रव्यको आदि लेकर अमूर्तीक द्रव्योंके होते हैं। इसतरह मूर्त और अमूर्त गुणोंके लक्षण और सम्बन्ध जानने योग्य हैं ।