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श्रीप्रवचनसारटीका ।
एक आकार में हलन चलन या बदलनेको व्यंजन पर्याय कहते हैं । ये पर्यायें धर्म अधर्म आकाश कालमें नहीं होती हैं । किन्तु जीव और पुद्गुलोमें होती है । जब यह जीव एक शरीरमें रहता हुआ भी हलन चलन करता है, मन वचन कायके कार्यके द्वारा सकम्प होता है, तथा समुदायके द्वारा फैलता है, और फिर शरीर प्रमाण होता है तथा एक शरीरको छोड़कर दूसरे शरीरमें जाकर उस शरीरप्रमाण होजाता है, उस शरीरमें रहते हुए शरीरकी वृद्धिके साथ फैलता है तब जीवके विभाव व्यंजन पर्याय होती है। जब यह जीव संसार अवस्थाको त्यागकर मुक्त अवस्थामें पहुंचता है तब इसका आकार अंतिम शरीर से कुछ कम रहता है - अरहंतका देह अयोगी गुणस्थानमे कपूर के समान उड़ जाता है केवल नख केश रह जाते हैं । इससे यह झलकता है कि जहा आत्मा प्रदेश व्यापक है वह है और जहां आत्मा प्रदेश नहीं हैं वह भाग पड़ा रहता है जैसे नख केश, क्योकि शरीर सहित आत्माकी माप करनेसे नखकेशों की भी माप होजायगी इसीलिये नखकेशो की कमीको निकालकर जो कुछ आकार आत्माका शरीर रहते हुए रहता है वही सिद्ध अवस्था में होता है इसीसे इस आकारको अंतिम शरीरसे कुछ कम कहते हैं, क्योकि अब सिद्धोंका आकार नहीं बदलेगा न हलन चलन करेगा इसलिये सिद्धोके आकारको स्वभाव व्यंजन पर्याय कहते है । पुद्गलोंमे परमाणुओंका परस्पर मेल होनेसे व कुछ परमाणुओका व कोई स्कंधके भागका किसी स्कंध से भेद होनेपर उन ही परमाणुओका व स्कंधके भागका व उनमेसे कुछका अन्य
सब भाग उड़ जाता