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द्वितीय खंड।
[१६५ उत्थानिका-आगे द्रव्योंमें सक्रिय और नि:क्रिय भेदको दिखलाते हैं यह एक पातनिका है। दूसरी यह है कि जीव और पुद्गलमें अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय दोनो होती हैं जबकि शेष द्रव्योंमें मुख्यतासे अर्थपर्याय होती है इसको सिद्ध करते हैं
उप्पादहिदिभंगा पोग्गलजीवप्पगस्त लोगस्स। परिणामा जायते संघादादो व भेदादो ॥ ३८॥ उत्पादस्थितिभगाः पुद्गलजीवात्मकस्य लोकस्य । परिणामा जायन्ते सघाताद्वा भेदात् ॥ ३८ ॥
अन्वयसहित सामान्यार्थ-(लोगस्स) इस छः द्रव्यमई लोकके (उप्पादविदिमंगा) उत्पाद व्यय धौव्यरूपी अर्थ पर्याय होते हैं तथा (पोग्गलजीवप्पगस्स ) पुद्गल और जीवमई लोकके अर्थात् पुद्गल
और जीवोंके (परिणामा) व्यंजन पर्यायरूप परिणमन भी (संधादादो संघातसे (व) या (भेदादो) भेदसे (जायते) होते हैं।
नोट-यहां वृतिकारकी अपेक्षा छोडकर अपनी समझसे अन्वय किया है।
विशेषार्थ-यह लोक छः द्रव्यमई है। इन सब द्रव्योमें सत्पना होनेसे समय समय उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप परिणमन हुआ करते हैं इनको अर्थ पर्याय करते है। जीव और पुद्गलोमें केवल अर्थ पर्याय ही नहीं होती किन्तु संघात या भेदसे व्यजन पर्यायें भी होती हैं । अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश तथा कालकी मुख्यतासे एकसमयवर्ती अर्थ पर्यायें ही होती है तथा जीव और पुद्गलोंके अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय दोनो होती हैं । किस तरह होती हैं सो कहते हैं । जो समय समय परिणमन रूप अवस्था है उसको