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________________ १५८ ] श्रीप्रवचनसारटीका । -स्थल है । इसके पीछे द्रव्योंका आधार लोकाकाश है ऐसा कहते हुए पहली, जैसा आकाश द्रव्यका प्रदेश लक्षण है वैसा ही शेष द्रव्योका है ऐसा कहते हुए दूसरी, इसतरह "लोयालोएसु" इत्यादि दो सूत्रोसे पांचवां स्थल है । इसके पीछे काल द्रव्यको अप्रदेशी स्थापित करते हुए पहली, समयरूप पर्याय काल है कालाणुरूप द्रव्यकाल है ऐसा कहते हुए दूसरी, इसतरह 'समओ दु अप्पदेसो' इत्यादि दो गाथाओसे छठा स्थल है । आगे प्रदेशका लक्षण कहते हुए पहली, फिर तिर्यक् प्रचय उर्ध्व प्रचयको कहते हुए दूसरी इसतरह "आयासमणु णिविटुं" इत्यादि दो सूत्रोंसे सातवां स्थल है । फिर कालाणुको द्रव्यकाल स्थापित करते हुए "उप्पादो पन्भंसो" इत्यादि तीन गाथाओंसे आठवां स्थल है इसतरह विशेष ज्ञेयके अधिकारमें समुदाय पातनिका है।। उत्थानिका-आगे जीव अजीवका लक्षण कहते हैंदव्य जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवयोगमयो । पोग्गलदव्वप्पमुहं अचेदणं हवदि य अजीवं ॥ ३९ ॥ द्रव्यं जीवोऽगीवो जीवः पुनश्चतनोपयोगमयः । पुद्गलद्रव्यममुखो चेतनो भवति चाजीवः ॥ ३९ ॥ अन्य सहित सामान्यार्थः-(दव्यं) द्रव्य (जीवमनीव) जीव और अजीव है (पुण) और (जीवो) जीव द्रव्य (चेदणा उपयोगमयो) चेतना सरूप तथा ज्ञान दर्शन उपयोगवान है (य पोग्गलदव्यप्पमुह) और पुद्गल द्रव्य आदि (अचेदणं) चेतना रहित (अनी) अजीव हैं ।। विशेषार्थः-द्रव्यके दो भेद हैं-जीव और अजीव, इनमेसे
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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