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________________ १२ सन् १९२१ में जो संघ श्री जैनवद्री मूलबद्रीजीका लाला हुकमचन्द जगाधरमल दिल्लीवालोंने चलाया था उनके साथ आप भी दर्शन के लिये सकुटुम्ब गये थे । उस मौकेपर श्री जेनबद्वीजीमें रथयात्रा हुई थी उसमें आप ९००) नौसो रूप देकर श्री जिनेन्द्र भगवानकी खवासी में बैठे थे । आप आजकल नेशनल बैंक ऑफ इन्डिया कानपूर तथा इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया स्यालकोटके बडे खजानची हैं । पंजाब गवरमेन्टने आपको स्यालकोट जिलेमें नोटेरी पबलिक भी बनाया हुवा है । गत वर्ष ० शीतलप्रसादजीके यहां ( पानीपत ) चौमासा करने की खुशी में आपने तमाम विरादरीको अपनी तरफसे प्रीतिभोज भी दिया था । J इस साल यहां चैत्रके वार्षिक रथोत्सवके समयपर पंजाब प्रांतिक सभाका अधिवेशन हुआ था । उस समय श्रीमान् ब्रह्मचारीजीकी प्रेरणासे लाला चिरंजीलालजीने प्रवचनसारकी ज्ञेयतत्वमदीपिकाको हिन्दी टीकाके प्रकाशनार्थ तथा वह ""जैनमित्र" के ग्राहकों को उपहारार्थ देनेके लिये नवशत ९००) रु० देनेकी स्वीकारता दे दी थी । उन्ही धर्मात्मा महोदयकी सहायता से यह ग्रन्थ आप पाठक महानुभावोके दृष्टिगोचर होरहा है । शुभमिति । विनीत लेखक - फुलजारीलाल जैन ट्रेंड शास्त्री; जैन: हाई स्कूल, पानीपत |
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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