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________________ १२६] श्रीप्रवचनसारटोका । पर्यायार्थिक नयसे विचार करें तो वे उत्पाद और व्यय परस्पर मिन्ने' २ हैं। जैसे पहली कही हुई बातमें जो कोई मोक्ष अवस्थाका उत्पाद है तथा मोक्षमार्गकी पर्यायका नाश है ये दोनो ही एक नहीं है किन्तु भिन्नर हैं। यद्यपि इन दोनोंका आधाररूप परमात्म द्रव्य भिन्न नहीं है अर्थात् वही एक है-इससे यह जाना जाता है कि द्रव्यार्थिक नयसे द्रव्यमें नित्यपना होते हुए भी पर्यायकी अपेक्षा नाश है। । भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने जगतमें द्रव्योका स्वभाव स्पष्ट किया है हरएक द्रव्य सत् है और नित्य है। न कभी पैदा होता है न नाश होता है। इसलिये जब द्रव्यको द्रव्यार्थिक नयसे देखा जावे तब यह द्रव्य सदाकाल अपनी सत्ताको प्रगट करेगा और यदि उस द्रव्यको पर्यायकी अपेक्षासे देखा जाये तो वह द्रव्य 'अपनी अनंत अगली व पिछली पर्यायोमें भिन्न २ दिखलाई देगा क्योकि द्रव्य नित्य होने पर भी समय समय एक अवस्थासे अन्य अवस्था रूप होता है। ये, पयायें हरएक समयमे ही नष्ट होती हैं । जब दूसरी पर्याय पैदा होती है तब पहली पर्याय नष्ट होती है। पर्यायदृष्टि से द्रव्य अनित्य है। यह सर्व लोक द्रव्योंका समुदाय है,। जब द्रव्योंकी पायें अनित्य या विनाशीक है तब यह लोक भी अनित्य, विना"शीक, या क्षणभंगुर है। , ' . इसी लोग हरएक जीव भी द्रव्यकी अपेक्षा नित्य है परन्तु पर्यायकी अपेक्षा अनित्य, है । एक ही, जीव अनादिकालसे-निगोद, पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, टेन्द्रिय,
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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