________________
द्वितीय खंड।
नमस्कार गाथा कही, फिर द्रव्य गुण पर्यायको कथन करते हुए दूसरी कही, फिर स्वसमय परसमयको दिखलाते हुए तीसरी, फिर द्रव्यके सत्ता आदि तीन लक्षण होते हैं इसकी सूचना करते हुए चौथी, इस तरह खतंत्र गाथा चारसे पीठिका कही । इसके पीछे अवान्तर सत्ताको कहते हुए पहली, महासत्ताको कहते हुए दूसरी, जैसा द्रव्य खभावसे सिद्ध है वैसे सत्ता गुण भी है ऐसा कहते हुए तीसरी, उत्पाद व्यय ध्रौव्यपना होते हुए भी सत्ता ही द्रव्य है ऐसा कहते हुए चौथी इस तरह चार गाथाओसे सत्ताका लक्षण मुख्यतासे कहा गया। फिर उत्पाद व्यय ध्रौव्य लक्षणको कहते हुए गाथा तीन, तथा द्रव्य पर्यायको कहते हुए व गुण पर्यायको कहते हुए गाथा दो, फिर द्रव्यके अस्तित्वको स्थापन करते हुए पहली, पृथक्त्व लक्षणधारी अतभाव नामके लक्षणको कहते हुए दूसरी, संज्ञा लक्षण प्रयोजनादि भेद रूप अतदभावको कहते हुए तीसरी, उसीके ही दृढ़ करनेके लिये चौथी इस तरह गाथा चारसे सत्ता
और द्रव्य अभेद हैं इसको युक्तिपूर्वक कहा गया। इसके पीछे सत्ता गुण है द्रव्य गुणी है ऐसा कहते हुए पहली, गुण पर्यायोका द्रव्यके साथ अभेद है ऐसा कहते हुए दूसरी ऐसी स्वतत्र गाथाएं दो हैं। फिर द्रव्यके सत् उत्पाद असत् उत्पादका सामान्य तथा विशेष व्याख्यान करते हुए गाथाएं चार है । फिर सप्तभंगीको कहते हुए गाथा एक है, इस तरह समुदायसे चौवीस गाथाओंके द्वारा आठ स्थलोंसे सामान्य ज्ञेयके व्याख्यानमे सामान्य द्रव्यका वर्णन पूर्ण हुआ।
इसके आगे इसी ही सामान्य द्रव्यके निर्णयके मध्यमें सामान्य भेदकी भावनाकी मुख्यता करके ग्यारह गाथाओ तक व्याख्यान