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श्रीप्रवचनसारटीका 1
नित्य और अनित्त्य दोनो स्वभाव है। जब नित्य है तब अवक्तव्य
भी है । जब अनित्य है तत्र अवक्तव्य भी है । अनित्य दोनो रूप है तब अवक्तव्य भी है । इम हो जायगे । एक स्वभाव रूप पदार्थको माननेसे भी काम नही लिया जासक्ता ।
तथा जब नित्य
स्वरूप बताया है:
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तरह सात भंग पदार्थ से कोई
श्री समन्तभद्राचार्यजीने आप्तमीमांसा में स्याद्वादका अच्छा
सदेव सर्व को नेच्छेत् स्वरूपादिचतुष्टयात् । असदेव विसान्न चेन्न व्यवतिष्ठते ॥
क्रमार्पितद्वयाद् ' द्वैत सहावाच्यमशक्तितः । अवक्तव्योत्तराः शेषानयो भगा स्वहेतुतः || १६ |
भावार्थ - अपने खरूपादि चतुष्टयकी अपेक्षासे सर्व वस्तु सत्रूप ही है इस बातको कौन बुद्धिमान न मानेगा तथा इसके विरुद्ध पर स्वरूपादि चतुष्टयकी अपेक्षा सर्व वस्तु परस्पर असतरूप ही है।" यदि द्रव्यमें अपने स्वरूपकी अपेक्षा सत् और पर स्वरूपकी अपेक्षा असत् न हो तो द्रव्य ठहर ही नहीं सक्ता है । जब हमने कहा कि घड़ा है तब घडेपनेके अस्तित्वको रखता हुआ वह घडा अपनेसे भिन्न कपड़ा, मकान आदि अन्य सर्व परके अभावको या नास्तित्वको भी रख रहा है । तब ही हम यह कह सक्ते है कि यह घड़ा है तथा घडेके सिवाय और कुछ नही है । इसी दो प्रकारके स्वभावको क्रमक्रमसे एक साथ बतानेके लिये तीसरा भंग यह कहा जायगा कि द्रव्य स्वस्वरूपसे अस्ति तथा पर स्वरूपसे नास्ति स्वरूप है यह तीसरा भंग अस्ति नास्ति बनता है । यद्यपि