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________________ 3 -द्वितीय खंड । [ १०५ किया गया. यहां स्यात् अस्ति एवके द्वारा जो एवका ग्रहण किया गया है वह नय सप्तभंगीके बतानेके लिये किया गया है । जैसे यहां शुद्ध आत्म द्रव्यमें सप्तभंगी नयका व्याख्यान किया गया ते यथा संभव सर्व पदार्थोंमे जान लेना चाहिये । भावार्थ - इस गाथामें आचार्यने सप्तभंग वाणीका स्वरूप इसी लिये दिखाया है कि इसकी पहली गाथामें जो द्रव्यमें द्रव्यकी अपेक्षा मे स्वभाव तथा पर्यायोंकी अपेक्षा भेद स्वभाव बताया है उसकी सिद्धि सात भंगों से शिष्य के प्रश्नवश होसती है उसको स्पष्ट कर दिया जाय । 7 - शिष्यने प्रश्न किया कि द्रव्यका क्या खरूप है ? आचार्य उत्तर देते हैं कि द्रव्य अपने गुण व पर्यायोंमें अन्वय रूप सदा चला जाता है इससे अमेद स्वरूप ही है, परन्तु पर्यायोंकी अपेक्षा मेद. स्वरूप ही है । तथापि यदि अभेद स्वरूपको और भेद स्वरूपको दोनोंको एक काल कहनेकी चेष्ठा करें तो कह नहीं मक्ते इससे अवक्तव्य स्वरूप ही है । इस तरह स्याद् अभेद: एव स्यात् सेदः एव स्यात् अवक्तव्यम् एव । तीन भंग हुए । शिष्यका प्रश्न - क्या ये अभेद तथा भेद दोनों स्वरूप है ? उत्तर - यह द्रव्य किसी अपेक्षासे अभेद व किसी अपेक्षा मेदः इस तरह दोनों स्वरूप ही है। यह चौथा भंग स्यात् अभेदः मेदः एव है । शिष्य - प्रश्न - तव फिर जो आपने अवक्तव्य कहा था, क्या यह अभेद स्वरूपको नहीं रखता है ? उत्तर -- अवश्य अभेद स्वरूको रखता है तथापि एक सम
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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