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________________ १०४ ] श्रीप्रवचनसारटीका । अस्ति एव प्रथम भंग है । तथा पर द्रव्य, पर क्षेत्र, पर काल व परभाव रूप परद्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा नास्तिरूप ही है। अर्थात् शुद्ध जीवमें अपने सिवाय सर्व द्रव्योंके द्रव्यादि चतुष्टयका अभाव है । यह स्यातू नास्ति एव दूसरा भंग है। एक समयमें ही जीव द्रव्य किसी अपेक्षासे अस्तिरूप ही है व किसी अपेक्षासे नास्ति रूप ही है तथापि वचनोंसे एक समयमे कहा नहीं जासक्ता इससे अवक्तव्य ही है । यह तीसरा स्यात् अवक्तव्य एव भंग है। वह परमात्म द्रव्य स्वद्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा अस्ति रूप है पर द्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा नास्ति रूप है ऐसे क्रमसे कहते हुए अस्तिनास्ति स्वरूप ही है यह चौथा स्यात् अस्तिनास्ति एव भंग है। इस तरह प्रश्नोत्तर रूप नय विभागसे जैसे ये चार भंग हुए तैसे तीन भंग और हैं जिनको संयोगी कहते हैं। स्व द्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा अस्ति ही है परन्तु एक समयमें स्व द्रव्यादिकी अपेक्षा अस्ति और पर द्रव्यादिकी अपेक्षा नास्ति होने पर भी अवक्तव्य है. इससे स्यात् अस्ति एव अवक्तव्य है यह पांचवां भंग है । पर द्रव्यादिकी अपेक्षा नास्ति रूप ही है परंतु एक समयमें स्व पर द्रव्यादिकी अपेक्षा अस्तिनास्ति होने पर भी अवक्तव्य है इससे स्यात् नास्ति एव अवक्तव्य है यह छठा भंग है। क्रमसे कहते हुए स्व द्रव्यादिकी अपेक्षा अस्ति रूप ही है तथा पर द्रव्यादिकी अपेक्षा नास्ति रूप ही है तथापि एक समयमें अस्तिनास्ति रूप कहा नहीं जासक्ता इससे स्यात् अस्तिनास्ति एव अवक्तव्य रूप है यह सातवां भंग है । पहले पंचास्तिकाय ग्रंथमें स्यात् अस्ति इत्यादि प्रमाण वाक्यसे प्रमाण सत्तभंगीका व्याख्यान
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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