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________________ १०० ] श्रीप्रवचनसारटीका । अवस्था है वह केवलज्ञानीकी नहीं, केवलज्ञानी अरहंतकी जो अवस्था है वह सिद्ध भगवानकी नहीं। इसतरह पर्यायकी अपेक्षा वही जीव अपनी भिन्नर पर्यायोमें भिन्नर ही झलकता है-अर्थात जीवका भेद स्वभाव प्रगट होता है। जब एक काल दोनोंका विचार करते हैं तो मिन्नर अपेक्षासे वही जीव अभेदरूप तथा भेदरूप मालूम होता है । इसी तरह मिट्टी अपने प्याले, गिलास, कलस, घड़े, थाली आदि अनेक अवस्थाओको रखती हुई भी मिट्टीके स्वभावकी अपेक्षा एक रूप मिट्टी ही है, परतु , जब अलग अलग हरएक मिट्टीकी अवस्थाको देखा जाता है तब प्याला है सो ग्लास आदि नहीं, ग्लास है सो प्याला आदि नही, कलस है सो प्यालाआदि नही, घडा है सो कलस आदि नही, थाली है सो घडा आदि नहीं । इसतरह हरएक मिट्टीकी पर्याय भिन्नर ही झलकती है, परंतु जब एक मिट्टी और उसकी प्याले आदि पर्यायोकी अपेक्षा एक साथ विचार किया जावे तब मिट्टीमें अभेद रूप और भेद रूप दोनो बातें दिखलाई पडती हैं। ___इन्ही तीनो भंगोका जव कथनकी अपेक्षा विचार किया जावे तब इसीके सात भंग बन जाते हैं जिसका वर्णन आगेकी गाथामे है । हरएक दो भिन्नर खभावोंको समझने समझानेमें सात भंगोका विचार हो सकता है । यहांपर द्रव्यके अभेद और भेद खभावको बताया गया है । ये दोनो ही खभाव द्रव्यमें एक काल याए जाते हैं। __ इसी बातका विशेष वर्णन स्वामी समंतभद्राचार्यने आप्तमीमांसामें किया है कि यदि द्रव्यमें सर्वथा भेद माना जावे तो इस
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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