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द्विताय खंड -
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द्रव्य नित्य है, पर्याय अनित्य है, जिससे स्थूलपने यह भी समझना चाहिये कि अभी हमारा आत्मा जिस मनुष्य पर्यायमे है वह पर्याय कभी न कभी अवश्य बदल जायगी, यद्यपि हम नष्ट नहीं होंगे। इससे हमको इस पर्यीयमे जो कुछ तप संयम व्रतादि वन सक्ता है सो अच्छी तरह कर लेना चाहिये, जिससे भविष्यमे योग्य पर्यायकी प्राप्ति हो ।
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उत्थानका- आगे एक द्रव्यका अपनी पर्यायोंके साथ अनन्यत्व नामका एकत्व है तथा अन्यत्व नामका अनेकत्व है ऐसा नयोकी अपेक्षा दिखलाते है । अथवा पूर्वमे कहे गए सदभाव उत्पाद और असद्भाव उत्पादको एक साथ अन्य प्रकारसे दिखाते हैं
दव्वट्ठिएण सव्वं सव्यं तं पज्जयट्टिपण पुणो । हवदि य अण्णमणण्णं तक्कालं तम्मयत्तादो ॥ २३ ॥
द्रव्यार्थिवेन सर्व द्रभ्य तत्पर्यायार्थिकेन पुनः |
भवत चान्यदनन्य तत्कालं तन्मयत्वात् ॥ २३ ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थ - (दव्यट्टिएण ) द्रव्यार्थिक नयसे (तं सव्वं ) वह सब (दव्व) द्रव्य (अणणं) अन्य नहीं है - वही है (पुणो ) परंतु (पज्जयट्ठिएण) पर्यायार्थिक नयसे (अण्णम् य) अन्य भी (हवदि) है - क्योकि ( तक्काले तम्मयत्तादो ) इस कालमें द्रव्य अपनी पर्यायसे तन्मई हो रहा है ॥
विशेषार्थ - वृत्तिकार जीव द्रव्यपर घटाते हैं कि शुद्ध अन्वय रूप द्रवार्थिक नयसे यदि विचार किया जाय तो सर्व ही कोई विशेष या सामान्य जीव नामा द्रव्य अपनी नारक, तिर्यच, मनुष्य, देव रूप विभाव पर्यायों के समूहोंके साथ तथा केवलज्ञान
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