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द्वितीय खंड। हरएक पर्यायमें मूर्तिकपना बना रहेगा। अवस्था क्षणभंगुर हैसमय समय भिन्न २ होती है, इसको जतानेवाला असत् उत्पाद है। श्री रामचंद्रनी मुक्त हुए तव मोक्ष पर्याय में वही जीव है नोरामके शरीरमें था यह सत् उत्पाद है तथापि ससार अवस्थासे मोक्ष अवस्था हुई जो पहले प्रगट न थी सो असत् उत्पाद है। यहां तात्पर्य यह लेना, चाहिये कि हमारी आत्मामें भी मोक्ष पर्याय शक्तिरूपसे मौजूद है इसलिये हमको उसकी प्रगटताके लिये पुरुषार्थ करना चाहिये और साम्यभावके अभ्यासमें नित्य लवलीन रहना चाहिये ॥ २० ॥ ,
उत्थानिका-आगे पहले कहा हुआ मत् उत्पाद द्रव्यसे अभिन्न हैं ऐसा खुलासा करते हैं
जीवो भवं भविस्सदि णरोऽमरो वा परो भवीय पुणो । किस व्वत्त पजहादि ण अहं अण्णो कहं होदि ॥ २१ ॥ जीवो भवन भविष्यति नरोऽमरो वा परो भूत्वा पुनः । "द्रदत्य प्रजाति न जहदन्यः कथ भवति ॥ २१ ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ-( जीवो) यह आत्मा (भवं) परिणमन करता हुआ (णरोऽमरो वा परो) मनुष्य, देव या अन्य लाइ भविस्सदि) होवेगा (पुणो भवीय) तथा इस तरह होकर (किं वित्त पलहँदि) क्या वह, अपने द्रव्यपनेको छोड़ बैठेगा ?, (गजहं
यो कहे होदि नहीं छोड़ता हुआ वह भिन्न कैसे होवेगा ? अर्थात देव्यपनेसे अन्य नहीं होगा।
विशेषार्थ यह परिणमन स्वभाव जीव विकार रहित शुद्धोपयोगसे विलक्षण शुभ या अशुभ उपयोगसे परिणमन करके मनुष्य,
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