________________
द्वितीय खंड।
[११.
है उस समय ही कटक रूप पर्यायमें जो सुवर्ण है वही सुवर्ण उसकी कंकन पर्यायमें है-दूसरा नहीं है । इस अवसरपर सद्भाव उत्पाद, ही है क्योंकि द्रव्य अपने द्रव्यरूपसे नष्ट नहीं हुआ किन्तु बराबर बना रहा। और जब पर्याय मात्रकी अपेक्षासे विचार किया जाता है तव सुवर्णकी जो पहले कटकरूप पर्याय थी उससे अब वर्तमानकी ककन रूप पर्याय भिन्न ही है। इस अवसरपर असत् उत्पाद है क्योकि पूर्व पर्याय नष्ट होगई और नई पर्याय पैदा हुई । तैसे ही यदि द्रव्यार्थिक नयके द्वारा विचार किया जावे तो जो आत्मा पहले गृहस्थ अवस्थामे ऐसा ऐसा गृहका व्यापार करता था वही पीछे जिन दीक्षा लेकर निश्चय रत्नत्रय भई परमात्माके ध्यानसे अनन्त सुखामृतमें तृप्त रामचंद्र आदि केवली पुरुष हुआ-- अन्य कोई नही-यह सत् उत्पाद है । क्योकि पुरुषकी अपेक्षा नष्ट नही हुआ। और जब पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा की जाती है तब पहली जो सराग अवस्था थी उससे यह भरत,. सगर, रामचंद्र, पांडव आदि केवली पुरुषोंकी जो वीतराग परमात्म पर्याय है सो अन्य है वही नहीं है-यह असत् उत्पाद है। क्योकिपूर्व पर्यायसे यह अन्य पर्याय है। जैसे यहां जीव द्रव्यमें सत् उत्पाद और असत् उत्पादका व्याख्यान किया गया तेसा सर्व द्रव्योमें यथासंभव जान लेना चाहिये।
भावार्थ-इस गाथामें आचार्य उत्पादके दो भेद भिन्नर अपेक्षासे द्रव्यके यथार्थ खरूपको स्पष्ट करनेके लिये कहते हैं । एक सत् उत्पाद दूसरा असत् उत्पाद । जो थी वही उपजनी इसकोः सत् उत्पाद और जो न थी वह उपजनी इसको असत् उत्पाद कहते.