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श्रीप्रवचनसारटोका।
बनारहना संभव है। इसी ही स्वरूपको माननेसे ही एक तत्वज्ञानी सविकल्प अवस्थाको नाशकर निर्विकल्प अवस्थामे पहुंच जाता है।
इस तरह द्रव्य गुणी है, सत्ता गुण है। दोनोका प्रदेशोंकी अपेक्षा अभेद है और संज्ञादिकी अपेक्षा भेद है।
उत्थानिका-आगे गुण और पर्यायोसे द्रव्यका अभेद दिखलाते हैं
णत्थि गुणोत्ति व कोई, पजामोत्तोह वा विणा दव्व। दव्वत्स पुणभावो, तम्हा दव्वं सय सत्ता ॥ १६ ॥ नास्ति गुण इति वा कश्चित् पर्याय इतीह वा विना द्रयम् । द्रव्यत्व पुनर्भावस्तस्माद्व्य स्वय सत्ता ॥ १९ ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ-(इह) इस जगतमे (दव्वं विणा) द्रव्यके विना (कोई गुणोति व पन्जाओत्ति णत्थि) न कोई गुण होता है न कोई पर्याय होती है (पुण दव्वत्त भावो) तथा द्रव्यपना या उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूपसे परिणमनपना द्रव्यका खभाव है (तम्हा दव्वं सयं सत्ता) इसलिये द्रव्य स्वयं सत्ता रूप है ।'
विशेषाथ-यहां मुक्तात्मा द्रव्यपर घटाकर कहते हैं कि मुक्तात्मा द्रव्यमें केवलज्ञानादि रूप गुणोंके समूह तथा परमपदकी प्राप्ति रूप मोक्ष पर्याय ये दोनो ही परमात्मा द्रव्यके विना नही पाए जाते क्योंकि गुण और पर्यायोका द्रव्यके प्रदेशोसे भेद नहीं है कितु एकत्त्व है । तथा मुक्तात्मा द्रव्य उत्पाद व्यय ध्रौव्यमई शुद्ध सत्तास्वरूप है इस लिये अभेदनयसे सत्ता ही द्रव्य है या द्रव्य ही सत्ता है। जैसे मुक्तात्मा द्रव्यमें गुणपर्यायोंके साथ अभेद व्याख्यान किया तैसे यथासम्भव सर्व द्रव्योमें जान लेना चाहिये ।