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श्रीप्रवचनसारटोका।
तीसरी, उसीके दृढ़ करनेके लिये चौथी । इस तरह द्रव्य और गुणमें अभेद है इस विषयमें युक्ति द्वारा कथनकी मुख्यतासे चार गाथाओंसे पाचमा स्थल पूर्ण हुआ ॥ १७ ॥
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि सत्ता गुण है और द्रव्या गुणी है
जो खलु दव्वसहावो परिणामो सो:गुणो सदविसिहो। ' सवद्वियं सहावे दवत्ति जिणोवदेसोय ॥१८॥
य खलु द्रव्यस्वभावः परिणामः स गुणः सदविशिष्टः ।
सदवस्थितं स्वभावे द्रव्यमिति जिनोपदेशोऽयम् ॥ १८ ॥ . - अन्वय सहित सामान्यार्थ-(खलु) निश्चयसे (जो दवसहावो परिणामों ) जो द्रव्यका स्वभावमई उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप यरिणाम है (सो सदविसिट्ठो गुणो) सो सत्तासे अभिन्न गुण है। (सहावे अवट्ठियं दव्वति सत् ) अस्तित्त्व स्वभावमे तिष्ठता हुआ द्रव्य सत् है या सत्तारूप है (जिणोवदेसोय) ऐसा श्री जिनेन्द्रका उपदेश है ॥ १८॥
विशेषार्थ-वृत्तिकार जीव द्रव्यपर घटाकर व्याख्या करते है कि जब आत्मामे पचेंद्रियके विषयोके अनुभवरूप मनके व्यापारसे पैदा होनेवाले सब मनोरथ रूप विकल्पजालोंका अभाव हो जाता है, तब चिदानंद मात्रकी अनुभूति रूप जो आत्मामें ठहरा हुआ भाव है उसका उत्पाद होता है और पूर्वमें कहे हुए विकल्पजालका नाश सो व्यय है, तथा इस उत्पाद और व्यय दोनोका आधार रूप जीवपना ध्रौव्य है। इस तरह लक्षणके धारी उत्पाद व्यय ध्रौव्य खरूप जीव द्रव्यका जो कोई स्वभावभूत परिणाम है वही सत्तासे