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________________ A द्वितीय खंड । [a पीतता झलकाना है इस तरह संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजनकी अपेक्षा सुवर्ण और पीतपने में भेद है ऐसे ही द्रव्य और गुणमें भेद या अन्यत्व है, प्रदेशोकी अपेक्षा भेद नहीं है। यदि द्रव्य और गुणमें सर्वथा भेद माना जावे तो जेसे कोई द्रव्य अपने प्रदेशोसे एक द्रव्य है वैसे गुण भी अपने प्रदेशोंसे एक दूसरा द्रव्य हो जावे तब दो द्रव्य हो जावें। सो यह वस्तुका खरूप नहीं है। गुण द्रव्यमें ही पाए जाते हैं अलग अपनी सत्तामें नहीं रह सक्ते । दूसरा दोष यह होगा कि जैसे द्रव्य गुणके विना नहीं होसक्ता वैसे गुण भी द्रव्यके विना नहीं होसक्ता । इस तरह सर्वथा जुदा माननेसे दोनोंका ही अभाव या शून्यपना होजायगा। तीसरा दोष यह होगा कि द्रव्यका अभाव सो गुण और गुणका अभाव सो द्रव्य जैसे घटका अभाव पट और पटका अभाव घट, इस दोपको अपोहरूपत्त दोप कहते है। इस तरह गुणी और गुणमें सर्वथा भेद माननेसे दोप प्राप्त होते है । ऐसा ही वस्तुका. खरूप निश्चय करना चाहिये । द्रव्य और गुग किप्ती अपेक्षा एक और किसी अपेक्षा अन्य हैं। इसी तरह जीव द्रव्य अपने ज्ञान सुख वीर्यादि गुणोसे खरूपापेक्षा भेद रखता हुआ भी प्रदेशोसे अभेद है। पुद्गल अपने स्पर्श रस गन्ध वर्ण गुणसे व खरूपसे भेद रखता हुआ भी प्रदेशोंसे अभेद हैं। ऐसे ही अन्य द्रव्योका स्वरूप निश्चय करना चाहिये । इस तरह द्रव्यके अस्तित्वको कथन करते हुए प्रथम गाथा, एककत्व लक्षण और अतद्भाव रूप अन्यत्व लक्षणको कहते हुए दूसरी, संज्ञा लक्षण प्रयोजनादिसे भेदरूप अतदभावको कहते
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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