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________________ श्रीप्रवचनसारटोका। ही सर्व द्रव्योंमें यथासंभव जान लेना चाहिये ऐसा अर्थ है। भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने गुण और गुणीके सबन्धको और भी साफ कर दिया है । गुणी द्रव्य है जो अनेक गुणोका समुदायरूप अखंड पिंड है । गुण वह है जो द्रव्यमें पाया जाता है अपने खरूपसे एक है। गुणी द्रव्यका नाम जुदा है, गुणका नाम जुदा है-लक्षण, संज्ञा, प्रयोजन भी दोनोका जुदा जुदा है इस तरह संज्ञा, संख्या लक्षण प्रयोजनकी अपेक्षा गुणी द्रव्यमें और गुणमें अन्यत्त्व है किन्तु जैसे एक द्रव्य दूसरे द्रव्यसे भिन्न है और ऐसी भिन्नता नहीं है । जैसे एक द्रव्य के प्रदेश दूसरे द्रव्यके प्रदेशोंसे बिलकुल भिन्न है ऐसी प्रदेशोकी भिन्नता द्रव्य और गुणमें नहीं है। जितने प्रदेश द्रव्यके है उतने ही प्रदेश गुणके हैं। जहां द्रव्य है वही गुण है। न द्रव्यके विना गुण कहीं पाया जाता है न गुणके विना द्रव्य कहीं पाया जाता है। दोनोंमें सदासे ही अमिट तादात्म्य सम्बन्ध है । मात्र खरूपमे भेद है । जैसे सोनेका पीलापन गुण है । दोनोमें एकता है। जहां सोना है वही उसका पीलापन है। सोनेके पीलापनसे जुदा सोना नहीं पाया जाता और न सोनेसे जुदा सोनेका पीलापन पाया जाता तथापि सोनेका नाम जुदा है पीलेपनका नाम जुदा है । सोनेका लक्षण पीलापन, भारीपन आदि अनेक गुणोका समूह है जब कि पीतपनेका लक्षण पीत वर्ण मात्रका बोध कराना है। सुवर्णकी संख्या एक व अनेक प्रकारकी खंडापेक्षा हो सक्ती है-पीतपनेकी संख्या अनेक सुवर्ण अंशोमें एक रह सक्ती है। सुवर्णका प्रयोजन शोभा आदिके लिये आभूषणादि बनाना है । पीतपनेका प्रयोजन
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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