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इसी तरह जो शुद्ध सत्ता गुण है वह परमार्थसे मुक्तात्म द्रव्य
नहीं होता है। शुद्ध सत्ता शब्दसे मुक्तात्मा द्रव्य नहीं कहा नाता । इस तरह गुण और गुणी में स्वरूपकी अपेक्षा या संज्ञादिकी 'अपेक्षा भेद है- तौभी प्रदेशोंका भेद नहीं है इससे सर्वथा एकका दूसरे में अभाव नहीं है ऐसा सर्वज्ञ भगवानने कहा है । यदि गुणीमें गुणका सर्वथा अभाव माना जावे तो क्या २ दोष होंगे उनको समझाते हैं। जैसे सत्ता नामके वाचक शब्दसे मुक्तात्मा द्रव्यवाच्य नहीं होता वैसे यदि सत्ताके प्रदेशोंसे भी सत्तागुणसे मुक्तात्म द्रव्य मिल होजावे तब जैसे जीवके प्रदेशोंसे पुद्गल द्रव्य मिन्न होता
द्वितीय खंड |
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हुआ अन्य द्रव्य है तैसे सत्ता गुणके प्रदेशोसे सत्तागुणसे मुक्त जीव
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द्रव्यभिन्न होता हुआ जुदा ही दूसरा द्रव्य प्राप्त होजावे । तब यह सिद्ध होगा कि सत्तागुण रूप जुदा द्रव्य और मुक्तात्मा द्रव्य
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जुदा, इस तरह दो द्रव्य होजायेंगे । सो ऐसा वस्तु स्वरूप नहीं है। "इसके सिवाय दूसरा दूषण यह प्राप्त होगा कि जैसे सुवर्णपना नामा गुणके, प्रदेशोंसे सुवर्ण भिन्न होता हुआ अभावरूप होजायगा तैसे ही सुवर्ण द्रव्यके प्रदेशोसे सुवर्णपना गुण भिन्न होता हुआ अभाव
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रूप हो जायगा तैसे सत्तागुणके प्रदेशोसे मुक्त जीवद्रव्य भिन्न होता हुआ अभावरूप हो जायगा, तैसे ही मुक्त जीव द्रव्यके प्रदेशोंसे सत्ता "भिन्न होता हुआ अभावरूप हो जायगा, इस तरह दोनोंका शून्यपना प्राप्त हो जायगा । इस तरह गुणी और गुणका सर्वथा मानने से दोष आ. जावेंगे। जैसे जहां मुक्त जीव द्रव्यमें सत्ता गुणके साथ सज्ञा आदि भेद अन्यपना है किन्तु प्रदेशोंकी है ऐसा व्याख्यान किया गया तैसे
पक्षा प्रभेद या