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न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां तृतीयः परिच्छेदः । ७५
र्शम् । अतो ऽ त्रायं घूमत्वहेतु विरुद्धकार्योपलब्धि हेतु र्भवेत् ॥ ६६ ॥ विरुद्ध कारणोपलब्धि का उदाहरण
नास्मिन् शरोरिणि सुखमस्ति हृदयशल्यात् ॥ ७० ॥
अर्थ – इस जीव में सुख नहीं है, क्योंकि सुख विरोधी दुःख का कारण हृदयशल्य ( मानसिक व्यथा ) मौजूद है । और दुःख का कारण मौजूद है, इसलिये वह दुःख को ही जनावेगा । इसलिये यहाँ यह हृदयशल्य हेतु विरुद्ध कारणोपलब्धिहेतु होगा ।। ७० ।।
संस्कृतार्थ - नास्मिन् शरीरिणि सुखमस्ति हृदयशल्यात् अत्र सुखविरोधिनो दुःखस्य कारणं हृदयशल्यरूपहेतुः विरुद्धकारणोपलब्धिहेतुर्जातः ॥ ७० ॥
विरुद्धपूर्व चरोपलब्धि हेतु का उदाहरण
नोदेष्यति मुहूर्तान्ते शकटं रेवत्युदयात् ॥ ७१ ॥
अर्थ -- एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय नहीं होगा, क्योंकि रोहिणी के उदय से विरुद्ध अश्विनीनक्षत्र के पूर्वचर ( पहले उदय होने वाले ) रेवती का उदय हो रहा है । रेवती का उदय अश्विनी के उदय का पूर्व चर है, इसलिये वह अश्विनी के उदय की भाविता को ही जनावेगा और रोहिणी के उदय का निषेध करेगा, इसलिये यहाँ यह हेतु विरुद्धपूर्वच रोपलब्धिहेतु हुआ ॥ ७१ ॥
- संस्कृतार्थ - नोदेष्यति मुहूर्तान्ते शकटं रेवत्युदयात् । अत्र शकटोदयाद् विरुद्धस्याश्विनी नक्षत्र पूर्वचरस्य रेवतीनक्षत्रस्योदयो विद्यते । स चाश्विनी नक्षत्र पूर्व चरो वर्तते, अतएवाश्विनी नक्षत्रभावितामेव साधयिष्यति, शकटोदयञ्च निषेत्स्यति । अतोऽ त्रायं रेवत्युदयत्व हेतुः 'विरुद्धपूर्व चरोपलब्धिहेतु' जतिः ॥ ७१ ॥
विरुद्धोत्तरचर हेतु का उदाहरण
नोदुगाद् भरणिः मुहूर्तात्वरं पुण्योदेयात् ॥ ७२ ॥