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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे -
अर्थ- -- साध्य और साधन का तादात्म्यसम्बन्ध होने पर स्वभावहेतु में अन्तर्भाव होता है और तदुत्पत्ति सम्बन्ध होने पर कार्य हेतु या कारणहेतु में अन्तर्भाव होता है । काल का व्यवधान ( फासला - अन्तर ) होने पर ये दोनों सम्बन्ध नहीं होते । और इन पूर्वचर तथा उत्तरचर हेतुत्रों में अन्तर्मुहूर्त काल का व्यवधान रहता है । इसलिये इन दोनों हेतुओं का साध्य के साथ तादात्म्य और तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं बनता; इससे इनका स्वभावादि तीनों में से किसी भी हेतु में प्रन्तर्भाव नहीं होता, अतएव ये जुदे ही हेतु हैं ||५७ ||
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संस्कृतार्थ - - साध्यसाधनयोस्तादात्म्यसम्बन्धे हेतोः स्वभावहेतावन्तर्भवो भवेत् । तदुत्पत्तिसम्बन्धे च कार्य हेतौ कारणहेती वान्तर्भावो विभा यते । न च पूर्वोत्तरचारिणो तदुभयसम्बन्वौ स्तः, कालव्यवधाने सति तद्भयसम्बन्धानुपलब्धेः । पूर्वोत्तरचारिणोश्चान्तर्मुहूर्त प्रमाण कालव्यवधानं सुनिश्चितम् । अतश्च तयो र्न स्वभावादिहेतुष्वन्तर्भावः । इति तौ तेभ्यः पृथगेव हेतू प्रत्येतव्यौ ॥ ५७।।
काल का व्यवधान होने पर भी कार्यकारणभाव मानने का खण्डन
भाव्यतीतयो मरणजाग्रद्घोषयोरपि नारिष्टोद्वोषौ प्रतिहेतुत्वम्
अर्थ - - श्रागामी मरण अरिष्ट ( अपशकुनों) का कारण नहीं है । तथा बीता हुआ सायंकाल का ज्ञान प्रातः काल के ज्ञान का कारण नहीं है ।।५८॥
संस्कृतार्थ -- ननु कालव्यवधाने ऽपि कार्यकारणभावो दृश्यते एव । यथा जाग्रत्प्रबुद्धदशाभाविप्रबोधयो में रणारिष्टयोर्वा कार्यकारणभाव इति वेन भविष्यत्कालीनमरणस्यापशकुनं प्रति, भूतकालीनजाग्रद्वोधस्य प्रबुद्धदशाभाविबोधं प्रति कारणत्वाभावात् ॥ ५८ ॥