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१२२ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे___ स्वपरपक्ष के साधन और दूषण की व्यवस्था
प्रमाणतदाभासौ बुष्टतयोभावितौ परिहतापरिहताস্থালী কাবিলঃ ফালৰাজী অনিকালি মুঙ্গী অ ।
अर्थ--वादी ने प्रमाण बोला, प्रतिवादी ने उसमें दोष दिया। फिर शादी ने उस दोष का परिहार किया, तो वादी के लिये वह साधन हो जावेगा तथा प्रतिवादी के लिये दूषण हो जायगा।
और वादीने प्रमाणाभास कहा तथा प्रतिवादी ने उसे प्रमाणाभास साबित किया; फिर वादी ने उसका परिहार नहीं कर पाया; तो वादी के लिये वह साधनाभास हो जावेगा और प्रतिवादी के भूषण हो जावेगा!
_ विशेषार्थ-अपने पक्ष में आये हुए दूषणों का परिहार करके अपने पक्ष को सिद्ध कर देने वाले की ही विजय होती है और दूसरे का पराजय । अपने पक्ष को सिद्ध कर लेना और परपक्ष में दूषण दे देना, यही प्रमाण और प्रमाणाभास जानने का फल है ।। ७३ ॥
नयादि तत्त्वों के स्वरूप के निर्णय का उपायसम्भवदन्यद्विचारणीयम् ।। ७४ ।।
अर्थ -प्रमाण से मिन्न. नयादि तत्त्वों का स्वरूप दूसरे शास्त्रों से जानना चाहिये । अत्र शास्त्र (ग्रन्थे) केवल प्रमाणविवेचन विहितम् । एतद्भिन्नं नयादितत्त्वविवेचनं ग्रन्थान्तराहिलोकनीयम्।। ७४॥
परीक्षामुख-माह हेयोपदेश-तस्वयोः ।
संविहे भादृशो बालः, परीक्षादवव्यधाम् ।। भावार्थ-जिस प्रकार परीक्षा करने में कुशल व्यक्ति अपने प्रारब्धा कार्य को पूरा करके ही छोड़ते हैं, उसी तरह अपने सदृश मन्दबुद्धि पाले पालकों के हेया और उपादेया तत्त्वों का ज्ञान कराने के लिये हर्पण के समान इस परीक्षामुख गन्थ को मुक्ष प्रल्पा ने पूर्ण किया। .
समाप्तोऽयं अन्य।