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५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान
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१०. वस्तु पढने का उपाय
रखने की शक्ति उत्पन्न हो जायगी, और इस प्रकार वे सस्कार खड खंड हो जायेंगे' यही निर्जरा है । और सस्कारो व अपराधो से शून्य पूर्ण शांत जीवन ही मोक्ष है । यह है सात तत्वों का अखंड ग्रहण ! एक मे सात और सात मे एक दिखाई दे। उसे अखड ज्ञान कहते है , ऐसा अभिप्राय है। इस प्रकार के अखड ज्ञान के अभाव मे उन सातों का पृथक् ग्रहण मिथ्या ग्रहण है । क्योकि जीवन से पृथक आस्रव आदि की सत्ता ही लोक मे नहीं है।
यह है वह ३० अंगो की पृथकता । वास्तव मे चारित्र नाम का पृथक् कोई पदार्थ नही और चारित्र से शून्य ज्ञान नाम का कोई पदार्थ नहीं। पर फिर भी जब चारित्र वाले अंग को समझाया जायेगा तो ज्ञान वाले अंग की बात आने न पायेगी । और जब ज्ञान को समझाया जायगा तो चारित्र के अंग की बात आने न पायेगी । इसलिये दोनों पृथक्-पृथक् स्वतंत्र पदार्थ भासने लगेगे । भले ही शब्दों मे आप स्वीकार करते रहे कि नही दोनों पृथक-पृथक नही एक हैं, पर यथा स्थान उनको पूर्ण चोकौर चित्रण मे जड़े बिना आपके ज्ञान पट पर उनका पृथक्-पृथक् ही अकित होना अनिवार्य है । इसे मिथ्या एकान्त कहते है, क्योकि वह अपका चित्रण किसी भी सत्तात्मक वस्तु के अनुरूप नही है । आप कहे कि आगम मे द्रव्य गुण, पर्याय तीनों को सत् स्वीकार किया है । सो भाई ! इनको पृथक्पृथकास्वतंत्र सत् स्वीकार किया है या एक ही पदार्थ मे जुड़े हुए एक रस रूप अंगों के रूप में सत् स्वीकार किया है ? यह बात ही तेरे जानने की है । परन्तु, शब्द मे उनका एक सत रूप प्रतिपादन करना अशक्य है । एक बार आप समझकर उन ३० के ३० अगों को यथा स्थान बैठाकर यदि एक अखंड चित्रण बना पाये, तो मै आगे पीछे भी अर्थात् कटमा रूप में भी या आनपूर्वी रूप में यदि कदाचित उनकी व्याख्या करूं, तो आप तुरन्त सब कुछ समझ जायेगे, परन्तु ऐसा किये बिना नही । इसलिये कर्तव्य तो यह है कि पहिले नम्बर वार १ से ३० तक की व्याख्या को सुने इन सर्व अंगों के पृथक पृथक भावों के चित्रण को