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________________ ५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान ७६ १०. वस्तु पढने का उपाय अभेद रूप देखने पर सब एक ज्ञान का ही काम है या आत्मा का ही काम है | इसी प्रकार जब सात तत्वों की बात चलती है तो तू इन्हे कहा खोजने का प्रयास करता है; जीव को सस्थावर भेदो मे अजीव पुल आदि पाच द्रव्यो मे, आस्रव को नाव के छिद्र मे, बन्ध को किसी काल्पनिक फुक सरीखी आत्मा के प्रदेशों मे सवर को नाव छिद्र रोकने मे, निर्जरा को पाल में दबाये गये कच्चे आम मे, और मोक्ष को लोक शिखर पर किसी पत्थर की शिला मे । अर्थात् इन सातों बातो को दान्त मे खोजने की बजाये दृष्टातों में खोजने लगता है । कभी अपने जीवन की एकता में इन सातो का अखड रूपखोजने का प्रयत्न किया है ? नही, तो भला फिर सात के सात तत्व याद करके भी तूने क्या याद किया ? सारी उम्र चर्चा मे कि बिता दी पर सीखा क्या ? इसे आगम का रहस्यार्थ नही कहते । इसे ही तो में शाब्दिक ज्ञान के नाम से कह रहा हूँ । 1 इन सातो का अखड चित्रण जो कि आगम को जनाना अभीष्ट है वह तो ऐसा है, कि मे एक 'जीव' या चेतन हूँ । यह शरीर रूप 'अजीव' मेरे जीवन का कलक है । इसके आधार पर जो भी मन वचन काम की क्रिया नित्य करता हूँ वह मेरे जीवन का अपराध ही 'आस्रव' है । पुन. पुन वह अपराध करके बराबर उनका पोषण करता आ रहा हूँ और इस प्रकार जीवन मे एक प्रबल संस्कार उत्पन्न कर लिया है, जो कि पुन: पुन: वह वह अपराध करने के लिये मुझे प्रेरित करता है - उसी का नाम 'बन्ध' है । मन को काबू में करके उसकी चचलता को रोककर उसे शान्ति मे स्थिर करने का प्रयास करे तो वचन व शरीर की क्रियाये स्वत. काबू में आ जाये, यही 'सवर' है। धीरे धीरे अभ्यास करते करते, अधिकाधिक बल के साथ बड़ी से बड़ी प्रतिकूलता मे भी मन की स्थिरता को बनाये
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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