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सम्भक व मिथ्या ज्ञान
दिनाक २७-६-६० प्रवचन न. ५
१ नय प्रयोग का प्रयोजन, २. सेशयादि व उसका कारण अखड चित्रण
का अभाव, ३ सम्यक व मिथ्या ज्ञान के लक्षण ४. आगम ज्ञान मे सम्यक् व मिथ्यापना, ५ प्रत्यक्ष ज्ञान में सम्यक् व मिथ्यापना, ६ सम्यग्ज्ञान में अनुभव का स्थान, ७. काल्पनिक चित्रण सम्यज्ञान नही, ८ पागम की सत्यार्थता, ज्ञानी के सान्निध्य का सम्यग्ज्ञान प्राप्ति में स्थान, १०. वस्तु पढ़ने का उपाय, ११ कुछ लक्षण।
हृदय की सरलता का आधार ज्ञान की सरलता है अर्थात् यथा
योग्य रीति से वस्तु के प्रत्येक अंगों का तथा उनमे १ नय प्रयोग दिखने वाले विरोधो का सहज स्वीकार ही ज्ञान की का प्रयोजन, सरलता है । उसी प्रयोजन की सिद्धि के अर्थ अथवा
वाद विवाद रूप कटुता व ज्ञान की खेचातानी रूप एकान्त