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२१ . अन्य अनेको नय
२. सर्व नयो का मूल वत् ।” लक्षण नं. ३७ वत् यह भी आगम पद्धति के 'परम भाव ग्राहक शब्द द्रव्यार्थिक नय व शब्द संग्रह नय' मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शब्द निश्चय नय मे गर्भित होता है।
४२ क्रिया नय.
"आत्मद्रव्य क्रियानय से अनुष्ठान की प्रधानता से सिद्धि प्राप्त करने वाला है-स्तम्भ के द्वारा सर फूट जाने पर दृष्टि रूपी निधान को प्राप्त करने वाले अन्धे वत् ।" पर पदार्थ के निमित्त से कार्य की सध्दि दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पध्दति का विषय नही है। अध्यात्म पद्धति की 'असदुद्भुत व्यवहार' नय मे इसका अन्तर्भाव होता है।
४३ ज्ञान नय.
''आत्मद्रव्य ज्ञाननय से विवेककी प्रधानता से सिद्धि प्राप्त करनेवाला है-चने की मुट्टी देकर चिन्तामणि खरीदने वाले ऐसे किसी घर के कोने मे बैठे हुए व्यापारी वत् ।" निज शुध्द भावो का कर्ता कर्म भाव दर्शन के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'भेद सापेक्ष अशद्ध द्रव्यार्थिक ब अशध्द संग्रह' नय, मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शष्द निश्चय' नय मै गर्भित होता है । क्योकि यहां शुद्ध भाव का कर्ता पना है।
४४ ब्यवहार नय
"आत्म द्रव्य व्यवहार नय से बन्ध और मोक्ष के विषै द्वैत का अनुसरण करने वाला है-बान्धने व छोड़ने वाले ऐसे अन्य परमाणु के साथ संयुक्त व वियुक्त होने वाले अन्य परमाणु वत् ।" दो भिन्न पदार्थो का संयोग दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति का