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२१ अन्य अनेको नय
२. सर्व नयो का मूल
___ नयो में अन्तर्भाव निज शुद्ध पारिणामिक भाव दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'परम भाव ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय व शुद्ध संगह नय' मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शुद्ध निश्चय' नय मे गर्भित होता है।
३८ कर्तृ नय
"आत्म द्रव्य कर्तृ नय से रगरेज की भाति रागादि परिणाम का करने वाला है। निज अशुद्ध परिणामो का कर्ता कर्म रूप अद्वैत दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'कर्म सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय व अशुद्ध संग्रह' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'अशुद्ध निश्चय' नय मे गर्भित होता है ।
३६. अकत नय
'आत्मद्रव्य अकर्तृ नय से केवल साक्षी ही है-अपने कार्य मे प्रवृत्त रगरेज के प्रेक्षक अर्थात देखने वाले किसी व्यक्ति वत् ।” नय न ३७ वत् यह लक्षण भी आगम पद्धति के 'परम भाव ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय व शुद्ध संग्रह नय' मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शुद्ध निश्चय नय मे गर्भित होता है। ४० भोस्त नय --
"आत्मद्रव्य भोक्तृ नय से (इन्द्रिय जन्य) सुख दुख आदि को भोगने वाला है-हितकारी व अहितकार अन्न को खाने वाले रोगी वत् ।” विपय जनित अशुद्ध भावो का भोक्ता बताने के कारण नय न. ३८ वत् यह लक्षण भी आगम पद्धति के 'कर्म सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक व अशद्ध संग्रह' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'अशध्द निश्चय' नय मे गर्भित होता है । ४१ अभोक्तु नय
"अत्मद्रव्य अभोक्तृ नय से केवल साक्षी ही है-हितकारी व अहितकारी अन्न को खाने वाले रोगी के प्रेक्षक अर्थात देखने वाले