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२०. विशुद्ध अध्यात्म नय
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८. शंका समाधान
२ शका -नय का लक्षण ज्ञान का विकल्प है और प्रमाण का लक्षण निर्विकल्प ज्ञान । इस प्रकार निश्चय नय को निर्विकल्प कहने से उसे प्रमाणपने का प्रसग प्राप्त होगा ?
उत्तर -ऐसा नहीं है, क्योकि निर्विकल्प भी यह निश्चय कथञ्चित
विकल्पात्मक है । विकल्प दो प्रकार के होते है-विधिरूप व निषेधरूप । यहा विधिरूप विकल्प भले न हो पर निषेध रूप विकल्प अवश्य है । 'जीवज्ञानवान है' यह विकल्प तो विधिरूप है और ‘जीव ज्ञान मात्र ही नहीं है' यह विकल्प निषेध रूप है ! व्यवहार नय मे विधि रूप विकल्प होता है और निश्चय नय मे व्यवहार के प्रतिषेध रूप विकल्प होता है । प्रमाण मे विधि व निपेध दोनो प्रकार के विकल्प को अवकाश नही । वह तो रसास्वादन रूप है । अत. निश्चय नय को प्रमाणपना प्राप्त नही हो सकता।
३ शका -व्यवहार नय सामान्य व सदभुत व्यवहार इन दोनों में क्या अन्तर है ?
उत्तर :- व्यवहार नय सामान्य का काम तो द्रव्य सामान्य अथवा
द्रव्य विशेष के अस्तित्व की प्रतीति कराना मात्र है, उन मे परस्पर भेद दर्शाना नही । परन्तु सद्भुत व्यवहार नय उसके विषय में द्वैत उत्पन्न कर के एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक दर्शाता है । यदि सद्भूत व्यवहार नय न हो तो सर्व द्रव्यो मे जाति भेद व व्यक्ति भेद करना सभव न हो सके । सर्व संकर दोष का प्रसंग आये । एक अद्वैत ब्रह्म के अतिरिक्त सब कुछ भ्रम दीखने लगे। या तो एक सर्व व्यापी चेतन हो या एक