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२० विशुद्ध अध्यात्म नय
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८. शका समाधान
नाम सार्थक है। असद्भूत सामान्य वत् जीव पुदगल मे अन्तलीन वैभाविक शक्ति विशेष ही इन नयो की उत्पत्ति का कारण है। बाह्य संयोगों के अभाव मे भी उस शक्ति का कार्य प्रतिक्षण जीव मे उस समय तक बराबर चलता रहता है जिस समय तक मोह का सर्वथा अभाव नहीं हो जाता । अर्थात दसवे गुण स्थान के अन्त समय तक वह वरावर अपना असर दिखाती रहती है। ध्यानस्थ दशा तक मे भी भले क्रोधादि भाव व्यक्त न होने पावे पर इतने मात्र पर से यह नही समझा जा सकता कि उस शक्ति का विनाश हो चुका है। यदि ऐसा समझले तो साधना पूरी करने के प्रति उत्साह समाप्त हो जाये। बस यही अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय का कारण है ।
और सूक्ष्म से सूक्ष्म उन विभाव भावो के प्रति सावधान रहते हुए. उनके त्याग के प्रति, समय प्रति समय उद्यमशील बने रहना इस नय को जानने का प्रयोजन है।
स्थूल क्रोधादि भाव वाह्य संयोग के बिना तीन काल मे होते नही । पर संयोग के बिना अकेली वैभाविक शक्ति वैसे भाव उत्पन्न करने में असमर्थ है । अत बाह्य पदार्थो का सयोग स्थूल विभाव ग्राहक उपचरित असद्भूत व्यवहार नय का कारण है। बुद्धि गोचर स्थूल क्रोधादि के आधार पर बुद्धि के अगोचर सूक्ष्म क्रोधादि भावों के अस्तित्व की प्रतीति होती है। यही इस नय का प्रयोजन है। अथवा क्रोधादि भावो से हट कर 'ज्ञान क्रिया' मे स्थिति पाना इन दोनो भेदों को जानने का प्रयोजन है ।
5 शका समाधान -इस विषय सम्बन्धी कुछ शकाओं का समाधान भी यहा कर देना योग्य है ।
१ शका -दोनों अध्यात्म पद्धतियों मे क्या अन्तर है ? उत्तर -देखो इसी अधिकार का प्रकरण नं. १