________________
२० विशुद्ध अध्यात्म नय ७०७ ५ उपचरित अपनचरित
सद्भूत व्यवहार नग वस्तु के वास्तविक अग है काल्पनिक नही । इसलिये इस नय का नाम सद्भूत है और गुण गुणी भेद करने के कारण व्यवहार है। स्वभाव भेद पर से द्रव्यो की भिन्न जातीयता का निर्णय करके पर द्रव्यो का निषेध तथा स्व द्रव्य मे प्रवृत्ति करना ही योग्य है । यही वताना इस नय का प्रयोजन है ।
जैसा कि पहिले ही बताया जा चुका है यह विशुद्ध अध्यात्म ५. उपचरित अनुपचरित पद्धति पर्याय पर्यायी भेद नही करती । गुण
सद्भूत व्यवहार नय सामान्य पर से द्रव्य सामान्य का और गुण विशेष पर से द्रव्य विशेष का परिचय देती है । 'ज्ञान वाला जीव है' ऐसा कहना सद्भुत सामान्य का विषय है क्योकि ज्ञान जीव का विशेष गुण है सामान्य नही । ज्ञान गुण मे किसी भी प्रकार का विकल्प विशेष उत्पन्न न करके ज्ञान सामान्य को ही जीव का लक्षण कहना तो अनुपचरित सद्भूत वयवहार समझना । ज्ञान गुण मे ज्ञेय सम्वन्धी कुछ उपचार कर देने पर यही लक्षण उपचरित सद्भुत व्यवहार का कहलायेगा । सो कैसे वही बताता हूँ ।
जिस प्रकार गुणो के आधार पर द्रक्ष्य की विशेषता दर्शाये बिना द्रव्य का परिचय देना असम्भव है,इसी प्रकार किसी भी गुण की विशेषता दर्शाये बिना गुण का परिचय देना असम्भव है । गुण का परिचय प्राप्त किये बिना श्रोता उसके आधार पर द्रव्य का परिचय भी कैसे पा सकेगा ? अत ऐसी अवस्था मे उपरोक्त अनुपरित लक्षण अपने प्रयोजनादि की सिद्धि करने में समर्थ न हो सकेगा । जिस प्रकार निश्चय नय के वाच्यभूत निर्विकल्प का परिचय देने से पहिले द्रव्य की विशेषता दर्शाने वाले व्यवहार नय का आश्रय लेना आवश्यक है, इसी प्रकार गुण के आधार पर द्रव्य का परिचय देने से पहिले गण की विशेषता को दर्शाना अत्यन्त आवश्यक है।