________________
२०. विशुद्ध अध्यात्म नय
२. निश्चय नय
अर्थ है और पर पदार्थ का क्या अर्थ है यह समझने के पश्चात अब मूल विषय पर आइये । यहा भी मूल नये दो ही हैं - निश्चय व व्यवहार । व्यवहार नय के भेद भी वही है - उपचरित अनुपचरित सद्भूत व असद्भूत । उनके लक्षण भी वही है । अन्तर केवल इतना है कि यहां द्रव्य शब्द का अर्थ त्रिकाली सामान्य द्रव्य है, और गण शब्द का अर्थ भी त्रिकाली सामान्य गुण है, उनकी शुद्ध व अशुद्ध पर्याय नही । इसी कारण निश्चय नय के यहा कोई उत्तर भेद नहीं है । स्व पदार्थं व पर पदार्थ की व्यारख्या में भी यहां उपरोक्त प्रकार अन्तर है । अब क्रम पूर्वक इन नयों के लक्षण आदि दर्शाने में आते हैं ।
६६६
यहा भी निश्चय नय का वही लक्षण है, जो कि पहले वाली २. निश्चय अध्यात्म पद्धति मे कर आये है, अर्थात अपने सम्पूर्ण गुणों
नय व पर्याय से तन्मय द्रव्यमें अभेद देखना निश्चय नय का लक्षण है । इतना विशेष है कि आगम पद्धति की द्रव्याथिक नय वत् यहां द्रव्य को शुद्ध व अशुद्ध में विभाजित नहीं किया जा सकता, और इसीलिये यहां इस नय के शुद्ध निश्चय व अशुद्ध निश्चय ऐसे दो भेद नही किये जा सकते। जबकि पहले वाला निश्चय नय, शुद्ध व अशुद्ध द्रव्य पर्यायों को द्रव्य रूप से और गुणो की शुद्ध या अशुद्ध पर्यायो को गुण रूप से स्वीकार करके, उसके साथ तन्मय द्रव्य को ग्रहण करने के कारण, दो भेद रूप कर दिया गया है । विशुद्ध अध्यात्म के इस प्रकरण मे द्रव्य शब्द का अर्थ भेद निरपेक्ष त्रिकाली द्रव्य सामान्य है और गुण शब्द का अर्थ शुद्ध व अशुद्ध पर्याय निरपेक्ष त्रिकाली गुण सामान्य है । अतः यहा न तो गुण की व्याख्या पर्यायो पर से की जा सकती है, और न द्रव्य की व्याख्या गुण पर से । इसका विषय पूर्ण निविकल्प है ।
निर्विकल्पता 'मे गुण से तन्मय द्रव्य' इतना कहने को भी अवकाश नही, क्योकि अभेद प्रदर्शक होते हुए भी इस वाक्य मे गुण,