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२०. विशुध्द अध्यात्म नर
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१. विशुध्द अध्यात्म
परिचय
मे कोई वस्तु इष्ट अनिष्ट या तेरी मेरी नही । पर घर की अस्तुओं मे कोई इष्ट है और कोई अनष्ट, कोई मेरी है और कोई तेरी। अजयब घर की वस्तुएं न ग्राह्य है और न त्याज्य न कोई बनाने योग्य है और न विगाड़ने योग्य । पर घर की वस्तुओं मे कोई ग्राह्य है और कोई त्याज्य, कोई बनाने योग्य है और कोई बिगाड़ने योग्य । इसी लिये अजायब घर की वस्तुओं का जानना तो कर्ता भोक्ता की कल्पनाओ से अतीत जानना मात्र है और घर की वस्तुओं को जानना कर्ता भोक्ता की कल्पनाओ सहित होने के कारण जानने के साथ साथ कुछ और भी है । ज्ञान के पहले जाति के कार्य को ज्ञान क्रिया कहते है और दूसरी जाती के जानने की क्रिया को कर्ता क्रिया कहते है । पारि भाषिक शब्द याद रखना । ज्ञान क्रिया ज्ञाता ष्टा भाव रूप है और कर्ता क्रिया क्रोधादि विकारो रूप । ज्ञान क्रिया ज्ञान के पारिणामिक भाव के साथ या चेतन के साथ तन्मय होने के कारण चेतन भाव है और कर्ता क्रिया जड़ पदार्थो के करने धरने के विकल्पों से तन्मय होने के कारण जड भाव है।
इन दोनों जाति की क्रियाओं मे ज्ञान एक समय मे एक ही कार्य कर सकता है, क्योंकि उपयोग ज्ञान की क्षणिक पर्याय है,
और एक समय में एक ही ज्ञान की दो पर्याय हो नहीं सकती है । इसलिये ज्ञान क्रिया के सद्वाव मे कर्ता क्रिया और कर्ता क्रिया के सद्वाव में ज्ञान क्रिया होनी असम्भव है । अर्थात क्रोध के समय ज्ञाता दण्टा पने की साम्यता और साम्यता के समय क्रोधादि होने असम्भव है ।
ज्ञान क्रिया से तन्मय चेतन ज्ञाता कहलाता है और कर्ता क्रिय से तन्मय चेतन कर्ता कहलाता है । इसका कारण भी यह है कि ज्ञान का अपने पारिणामिक भाव के अनुरूप कार्य ही ज्ञान की जाति का कार्य कह जा सकता है ।' कर्ता भोक्ता की