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१६. व्यवहार नय
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१४. व्यवहार नय सम्वन्धी शका समाधान
विषय भूत अभेद भी दिखाई दे रहा है । वहाँ किसी का भी निषेध या मुख्यता नही है । जैसे अग्नि को देखने पर उसी समय बिना विकल्प उठाये भी स्वतः उसके उष्णता आदि सर्व अंगो का ग्रहण हो जाता है ।
शका समाधान
१४ व्यवहार नय सम्बन्धी अब व्यवहार नय के सम्बन्ध मे उठने वाली कुछ शंकाओं का समाधान कर देना
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योग्य है ।
शंका - आगम पद्धति की सात नयो मे ग्रहण की गई व्यवहारनय व इस व्यवहार नय मे क्या अन्तर है ?
उत्तर - पहली व्यवहार नय का विषय केवल द्रव्यार्थिक था और इसका विषय द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक दोनों | कारण कि पहिली का व्यापार तो सग्रह नय के अभेद विषय में भेद कर देना मात्र था परन्तु उनमे व भेदो मे से किसी को भी पृथक सत्ता रूप से स्वीकार करना नही । और इस दूसरी का व्यापार अभेद द्रव्य मे उसकी द्रव्य पर्यायो की अपेक्षा अथवा गुण. गुणी आदि की अपेक्षा भेद करना भी है और भिन्न भिन्न पर्याय की पृथक सत्ता देख कर उन्हें एक दूसरी से निरपेक्ष स्वतंत्र पदार्थ स्वीकार करना भी । जैसे 'जीव दर्शन ज्ञान आदि गुण वाला है' ऐसा कहना भी व्यवहार का विषय है और 'मनुष्य कोई और जाति का पदार्थ है और कीड़ा कोई और जाति का पदार्थ है' ऐसा कहना भी व्यवहार है ।
पहले व्यवहार का क्षेत्र केवल वस्तु व उसके अंग थे और इस व्यवहार का क्षेत्र वस्तु व उसके अगो के अतिरिक्त पर संयोग भी है, अर्थात भिन्न द्रव्यो मे कर्ता भोक्ता आदि भावों को देखना भी इसका विषय है ।