________________
-
१६ व्यवहार नय
६८
१३. अनुपरित
असद्भूत व्यवहार नय भुलाया नहीं जा सकता । निश्चय नय का विषय अभेद या निर्विकल्प है, अतः वह केवल अनुभव मे देखा जा सकता है, पर अधिकाधिक विगेपताओ का परिचय पाने के लिये विचारा नहीं जा सकता। उस अभेद विवा का परिचय इस व्यवहार के द्वारा ही प्राप्त होता है, अत प्राथमिक जनों के लिये यह अत्यन्त उपकारी है।
चारित्र की अपेक्षा भी प्राथमिक भूमिकाओं मे पूर्ण वीतराग अभेद चारित्र के अंग भूत विशेष भेदो के आधार पर से ही अभ्यास पथ पर आगे बढा जाना सम्भव है। अतः ज्ञान व चारित्र दोनो दिशाओ मे ही यह साधन है और निश्चय साध्य । व्यवहार से ही निश्चय ज्ञान या निश्चय चारित्र की सिध्दि होती है ।
शंका.-व्यवहार व निश्चय दोनो का विषय परस्पर विरोधी है
अतः दोनो मे परस्पर सापेक्षता रखते हुए उनका ग्रहण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर--दोनो नयो के विषय को बारी बारी निर्णय करके, वस्तु
को माध्यस्थ भाव से भेद व अभेद रूप युगपत देखना ही दोनोनियों का युगपात ग्रहण है । ऐसे वस्तु के ग्रहण मे विधि निषेध नही होता. साम्यता होती है । इसीलिये निश्चय या वयवहार दोनों के पक्ष ही साधक के लिये निषिध्द है । वस्तु का निर्णय हो जाने पर दोनो का ही आश्रय छोडकर पक्षातिक्रान्त हो जाना योग्य है। यही दोनो का यथार्थ ग्रहण है । क्योकि अखण्ड वस्तु अब साम्य भाव से देखी जा रही है, उसमे व्यवहार के विषय भूत भेद भी दिखाई दे रहे है, और निश्चय का