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________________ १६. व्यवहार नय ६८२ १२. उपचरित असद्भुत व्यवहार नय प्रकार का सम्बन्ध विजाति द्रव्यों मे उपचरित असद्भूत व्यवहार जानना चाहिये । क्योंकि मैं तो जीव हू और यह सब अजीव है। (आ. प. । १० । पृ ८४ ४. नि सा । ता. व ११८ "उपचारितासद्भुतव्यवहारण घट पटसशकटादीनां कर्ता ।" अर्थ -उपचरित असद्भुत व्यवहार नय से घट पट रथ आदि का यह जीव का है। सो भी विजाति उपचार है । ५ वृ. द्र स ।टी । ६ । २३ "उपचरितासद्भुतव्यवहारण ___इष्टानिष्टपञ्चेन्द्रियविषयजनितसुखदुख चभुवते ।” अर्थ --उपचरित असद्भत व्यवहार नय से इष्टानिष्ट पञ्चे न्द्रिय विषय जनित सुख दुख को जीव भोक्ता है । '६ वृ. द्र स.। टी १६ । ५७ “उपचरितासद्भूतव्यावहारेण (सिद्धभगवन्त ) मोक्षशिलाया तिष्ठन्ति ।" अर्थ--उपचरित असद्भुत पवहार नय से सिद्ध भगवान मोक्ष शिला पर विराजते है। ७ वृ द्र स.। टी । ४५ । १९६ "योऽसी बहिविषये पंञ्चेन्द्रिय विषयादि परित्याग से उपचरितासद्भुत व्यवहारेण ।" अर्थ:-यह जो बाह्य विषय रूप पञ्चेन्द्रिय विषय आदि का परित्याग है सो उपचरित असद्भूत व्यवहार से है । - (३ ) इसी प्रकार का उपचार उभय द्रव्यों में समझना। उभय द्रव्य उसे कहते है जिसमे जीव व अंजीव दोनो का समूह पाया जाता हो, जैसे नगर ग्रामादि ।'
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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