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१६. व्यवहार नय
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१२. उपचरित असद्भूत
व्यवहार नय
जाति द्रव्यों मे भी हो सकते है, असत्यार्थ अर्थात् विजाति द्रव्यों भी हो सकते है, तथा सत्यासत्यार्थ अर्थात् उभय या स्वजाति व विजाति के समूह रूप द्रव्यों मे भी हो सकते है । यह सब प्रकार के सम्बन्ध ही उपचरित
असद्भूत व्यवहार का विषय है । १. उदाहरणार्थ स्वजाति द्रव्यों में उपचार इस प्रकार है:१ व २ च । २४२ 'पुत्रादिबन्धुवर्णोऽहं च मम सम्पदादि
जल्पन् । उपचारासद्भूत.स्वजातिद्रव्येषु
ज्ञातव्य । २४२ ।” अर्थ:--पुत्रादि बन्धु वर्ग तो मैं हूं और यही मेरी सम्पदा
है ऐसी कल्पना या कथन स्वजाति द्रव्यों मे उपचरित ,
असद्भूत व्यवहार जानना चाहिये। (आ.प. । १० । प.८४) २. नय चक्र गद्य। पृ. २३ "पुत्रमित्रकलत्रगोत्रादिभिः ममेदं जीव
सम्बन्धिन इति ।" अर्थ---पुत्र, मित्र, कलत्र व गोत्रादि मेरे है यह स्वजाति द्रव्यो
मे उपचार है । क्योंकि मै भी जीव हूं और मेरे सम्बन्धी
पुत्र मित्र आदि भी जीव हैं । २, इसी प्रकार विजातीय द्रव्यों में भी:
३ व न च । २४३ आभरणहेमरत्नवस्त्रादि ममेति जल्पन् ।
प्रचरितासद्भूतो विजातिद्रव्येषु ज्ञातव्यः । २४३ ।" अर्थ :-आभरण, हेम, रत्न, वस्त्रादि के साथ 'मेरे है' इस