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________________ १६. व्यवहार नय ६८० १२ उपचरित असद्भूत व्यवहार नय सम्बन्ध जीव से इस प्रकार वस्त्रादि का सम्बन्ध जीव से कहना वास्तव मे सम्बन्ध का सम्बन्ध है, या परम्परागत सम्बन्ध है, यही उपचार का उपचार है । यही स्थूल उपचार उपचरित असद्भूत का विषय है। इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये। १ वृ न च ।२४० “उपचारादुपचारं सत्यासत्येषूभयार्थपु । सजातीतरमिश्रेषु उपचरित करोति उपचारंः । २४० ।" अर्थ --स्वजाति विजाति व मिश्रित पदार्यो मे परस्पर पूर्वोक्त ९ प्रकार से उपचार का भी उपचार करना उपचरित व्यवहार है। २ ा प । १६ । प. १२७ "असद्भुतव्यवहार एवोपचार., उप चारादण्युपचार य. करोति स उपचरितासद्भत व्यवहारः।" अर्थ --असद्भूत व्यवहार तो ९ प्रकार के उपचार को कहते है । उस उपचार का भी उपचार जो करता है सो उपचरित असद्भुत व्यवहार है। तात्पर्य यह है कि (देखो नीचे का उद्धरण ) १०. प्रा. प. १६ । पृ.१२८ “संश्लेषसम्बन्ध ., परिणामपरिणामी सम्बन्धः, श्रद्धाद्धेयसम्बन्धः, ज्ञानज्ञेयसम्बन्ध., चारित्रचर्यासम्बन्धश्चेत्यादि सत्यार्थः असत्यार्थः, सत्यासत्यार्थ श्चेत्युपचरितासद्भूतव्यवहारनयस्यार्थः।" अर्थ:-संश्लेष सम्बन्ध, परिणाम परिणामी सम्बन्ध, श्रद्धा श्रद्धेय सम्बन्ध, ज्ञान ज्ञेय सम्बन्ध, चारित्र चर्या सम्बन्ध, इत्यादि अनेकों प्रकार के सम्बन्ध सत्यार्थ अर्थात स्व
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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