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१६. व्यवहार नय
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सम्बन्ध जीव से इस प्रकार वस्त्रादि का सम्बन्ध जीव से कहना वास्तव मे सम्बन्ध का सम्वन्ध है, या परम्परागत सम्बन्ध है, यही उपचार का उपचार है । यही स्थूल उपचार उपचरित असद्भूत का विपय है । इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये ।
१२. उपचरित श्रसद्भूत व्यवहार नय
१ वृ न च ।२४० “उपचारादुपचार सत्यासत्येपूभयार्थ पु । सजातीत रमिश्रेषु उपचरित करोति उपचार । २४० ।”
अर्थ -- स्वजाति विजाति व मिश्रित पदार्थों में परस्पर पूर्वोक्त ९ प्रकार से उपचार का भी उपचार करना उपचरित व्यवहार है ।
२ श्राप | १६ | पृ. १२७ "असद्भूतव्यवहार एवोपचार, उपचारादण्युपचारं यः करोति स उपचरितासद्भूत व्यवहार. | "
अर्थ --- असद्भूत व्यवहार तो ९ प्रकार के उपचार को कहते है । उस उपचार का भी उपचार जो करता है सो उपचरित असद्भुत व्यवहार है । तात्पर्य यह है कि (देखो नीचे का उद्धरण )
१०. आ. प. ।१९ । पृ.१२८ " सश्लेषसम्बन्ध., परिणामपरिणामी - सम्वन्धः, श्रद्धाद्धेयसम्बन्धः, ज्ञानज्ञेयसम्वन्ध., चारित्रचर्यासम्बन्धश्चेत्यादि सत्यार्थं असत्यार्थः, सत्यासत्यार्थश्चेत्युपचरितासद्भूतव्यवहारनयस्यार्थ. ।"
अर्थ :-- संश्लेष सम्बन्ध,
श्रद्धेय सम्बन्ध, इत्यादि अनेको प्र
"
। सम्ब",
चारित्र चय"
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