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१६. व्यवहार नय
१०. असद्भूत व्यवहार
नय का लक्षण अशुद्ध है, उस द्रव्य के अपने ही अगो या पर्यायो को ग्रहण करता है इसलिये सद्भूत है तथा उस द्रव्य मे भेद डाल कर कथन करता है इस लिये व्यवहार है । अतः इसका अशुद्ध सद्भूत व्यवहार' यह नाम सार्थक ही है। पर द्रव्यों के सयोग की अपेक्षा का उपचार होने के कारण इसके विषय भूत अशुद्ध पर्यायों को उपचरित कहना भी सार्थक ही है । यह तो इस नय का कारण है । और वर्तमान भावों या पर्यायों की. अशुध्दता को जान कर इन बाह्य के नाम रूप कर्मो तथा बाह्य सयोगों से दृष्टि हटा कर, अन्तरंग शुध्द चैतन्य विलास की और लक्ष्य ले जाना इसका प्रयोजन है ।
दो भिन्न द्रव्यों में अनेक अपेक्षाओं से एकत्व का उपचार करने १० असभूत व्यवहार वाला असद्भूत व्यवहार नय है । जैसे कि शरीर _____नय का लक्षण को या धन, मकान, आदिक को जीव का कहना या इनका कर्ता धर्ता जीव को कहना । वस्तुतः देखने पर ऐसा कथन असत्य व असद्भूत है इसीलिये इस प्रकार के भेद कथन को असद्भूत व्यवहार नय कहते है । लौकिक वचन व्यवहार सब इसी नय पर आधारित है, क्योकि अन्तरंग अखण्ड तत्व से अनभिज्ञ लौकिक जनों को बाह्य के संयोगो मे ही सार्थकता दीखती है ।
दो पदार्थों में यह एकत्व का उपचार प्रमुखतः ९ प्रकार का है-द्रव्य का द्रव्य मे, गुण का गुण मे, पर्याय का पर्याय में, द्रव्य का गुण मे, द्रव्य का पर्याय मे, गुण का द्रव्य मे, गुण का पर्याय मे, पर्याय का द्रव्य मे, पर्याय का गुण मे । भिन्न द्रव्य भी तीन प्रकार के हो सकते है-सजातीय, विजातीय व उभय । एक ही द्रव्य में भेद डाल कर वह उपचार करना तो सद्भूत का विषय है । और पृथक पृथक सजातीय द्रव्यो मे या विजाति द्रव्यों मे वही नौ प्रकार का उपचार करना असद्भूत का विषय है । जैसे कि एक जीव के गुण या पर्याय आदि का आरोप उसी जीव द्रव्य मे करना या एक पुद्रगल