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१६ व्यवहार नय
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'जीव सामान्य मतिज्ञान वाला है या राग द्वेषादि वाला है'
यह द्रव्य सामान्य की अपेक्षा अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नय के उदाहरण हे । 'संसारी जीव मति ज्ञान वाला है या राग द्वेषादि वाला है' यह द्रव्य पर्याय की अपेक्षा अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नय के उदाहरण है । इसे उपचरित सद्भूत भी कहते है । क्योंकि पर सयोगी वैभाविक औदयिक अशुद्ध भावों का द्रव्य के साथ स्थायी सम्बन्ध नही है, न उसके स्वभाव से उनका मेल खाता है अत टे उपचरित भाव कहे जाने योग्य है ।
६. शुद्ध सद्भूत
व्यवहार नय
अब इन्ही को अभ्यास व पुष्टि के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देता हूं।
१ वृ द्र स । टी । ६ । १८.
"छद्मस्थ ज्ञानदर्शनापरिपूर्णपेिक्षया पुनरशुद्ध सद्भूतवाच्च उपचरित सद्भूत व्यवहार ।"
अर्थ - छद्मस्थ जीवों का ज्ञान दर्शन अपरिपूर्णता की अपेक्षा अशृद्ध सद्भूत का वाच्य उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है ।
२ आ प १० । पृ ८१ अशुद्ध सद्भूत व्यवहारो यथा अशुद्ध गुणाऽ शुद्ध गुणिनोरशुध्द पर्यायाऽ शुध्द पर्यायिणोर्भेद कथनम् ।”
अर्थ:-अशुध्द सद्भूत व्यवहार ऐसा है जैसे कि अशुध्द गुण व अशुध्द गुणी मे तथा अशुध्द पर्याय व अशुध्द पर्यायी मे भेद कथन करना ।
३ आप । १९ । १३१. “तत्र
सोपाधि
गुणगुणिनोर्भेद