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१६. व्यवहार नय
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६. अशुध्द सद्भूत
व्यवहार नय
अर्थः-परमाणु पूग्दल की शुध्द पर्याय है, क्योकि वह पारि
णामिक भाव लक्षण वालो वस्तुगत षट्गूण हानि वृध्दि रूप अति सूक्ष्म अर्थ पर्याय रूप है । वह सादिसान्त पर्याय अवश्य है परन्तु पर द्रव्य से निरपेक्ष है । इसलिये उस षट गूणहानिवृध्दिरूप शूध्द पर्याय वाले परमाणु को पुद्रगल द्रव्य बताना शूध्द सद्भूत व्यवहार नय है।
यह तो इस नय के लक्षण व उदाहरण हुए अब कारण व प्रयोजन देखिये। क्योकि शुध्द द्रव्य मे भेद डालता है इसलिये तो शुद्ध है । वस्तु मे अपने ही अगो या भेदों को ग्रहण करता है इसलिये सद्भूत है, तथा अभेद वस्तु मे भेद डालता है इसलिये व्यवहार है । इस प्रकार 'शुध्द सद्भूत व्यवहार नय' ऐसा नाम सार्थक है। क्योंकि परद्रव्य की अपेक्षा व उपचार से रहित है इसलिये इसे अनुपचरित भी कहना सार्थक ही है । यह तो इस नय का कारण है ।
और शुध्द स्वभाव से परिचय पाकर उसकी ओर झुकने का प्रयत्न करना इसका प्रयोजन है।
शुद्ध सद्भूत व्यद्भवहार नय वत् ही यहां भी समझना । अन्तर ६ अशुद्ध सद्भूत केवल इतना है कि यहा सामान्य गुण वपर्याथ रूप
व्यवहार नय स्वभाव भावों की अपेक्षा भेद डाला जाना सम्भव नहीं है, क्योकि वे अशुद्ध नही होते । द्रव्य सामान्य मे अथवा अशुद्ध द्रव्य पर्याय रूप अशुद्ध द्रव्य मे अशुद्ध गुणो व अशुद्ध पर्यायो के आधार पर भेदोपचार द्वारा गुण-गुणी, पर्याय-पर्यायी व लक्षण लक्ष्य आदि रूप द्वैत उत्पन्न करना अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नय है । अशुद्ध गुण व पर्याये औदायिक भाव रूप होते है जैसे ज्ञान गुण की मति ज्ञानादि पर्याये, चारित्र गुण की राग द्वेषादि पर्याये तथा वेदन गुण की विषय जनित सुख दुखादि पर्याये ।