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अर्थ - जैसे पथिकों के चलने के कारण " यह सडक चलती है "
ऐसा कहा जाता है वैसे ही जीव में कर्मों व नो कर्मों या शरीर के वर्ण को देख कर " यह जीव का रंग है" ऐसा व्यवहार नय से कहा गया है ।
१६. व्यवहार नय
४. व्यवहार नय के
कारण व प्रयोजन
३ लक्षण न. ३ (लौकिक रूढि )
१. स. सा. । आ० । ८४ “कुलालः कलशं करोत्यनुभवति चेति लोकानामनादि, रूढ़ोस्ति ताव वद्वयवहार ।"
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अर्थ
-कुलाल या कुम्हार कलश बनाता है तथा उसे भोगता है ऐसा कहना लोगों की अनादि रूढ़ि है, सो ही व्यवहार है । }
२. प० घ० । ५० । ५६७ “अस्ति व्यवहारः किल लोकानाम यमलब्धबुद्धित्वात् । योऽयमनुजाि वपुर्भवति सजीवस्ततोप्यन न्यत्वात् । ५६७ ।”
अर्थ -- अलब्ध बुद्धि साधारण लोगों का यह कहना व्यवहार है कि यह जो मनुष्यादिकों का शरीर है वह जीव है क्योकि यह जीव के साथ एकमेक होकर रहता है, उससे अन्य नही है ।,
क्योकि अभेद वस्तु में भेद डाल कर कथन करता है इसलिये ४ व्यवहार नय सामान्य इस का 'व्यवहार' ऐसा नाम सार्थक है । के कारण व प्रयोजन वस्तु सर्वथा एक हो ऐसा नही है । एक ही वस्तु मे भिन्न भिन्न प्रकार के कार्य देखने मे आते हैं, जैसे एक ही आम मे रस व रूप व - गन्ध व स्पर्श चार बातें देखने मे आती हैं